________________
(५८६) बर्हादि वच्च मृदवः खराश्च प्रस्तरादिवत् । . स्निग्धा घृतादिवत् ज्ञेया रुक्षा भस्मादिवन्मताः ॥१२०॥ गुरु स्पर्श परिणता वजादिवत्प्रकीर्तिताः । लघु स्पर्श परिणता अर्कतुलादिवन्मताः ॥११॥
इति स्पर्श परीणाम ॥८॥ अब स्पर्श परिणाम का स्वरूप कहते हैं । स्पर्श परिणाम आठ प्रकार का होता है - उष्ण, शीत, मृदु, कर्कश, स्निग्ध, रुक्ष, भारी और हल्का। पुद्गल परिणामी का अग्नि के समान उष्ण स्पर्श होता है, हिम के समान शीत स्पर्श होता है, पिच्छ के समान मृदु स्पर्श होता है, पाषाण-पत्थर के समान कर्कश कठोर स्पर्श होता है, घृत आदि के समान स्निग्ध स्पर्श है, राख आदि के समान रुक्ष रूखा स्पर्श है, वज्र आदि के समान भारीपन और आक की रुई समान हलका स्पर्श भी होता है। (११८-१२१)
यह स्पर्श परीणाम है । (८)
अगुरु लघु परिणाम व्यवस्था चैवम् - .: धूमो लघुरूपलो गुरुः ऊर्ध्वाधोगमन शीलतो ज्ञेयौः। - गुरु लघुरनिलस्तिर्यग्गमनादाकाशमगुरुलघु ॥१२२॥
. अब पुद्गल के अगुरु लघु परिणाम का स्वरूप कहते हैं । धुंआ ऊंचा जाता है, इसलिए वह लघु है और पत्थर नीचे गिरता है अतः वह गुरु समझना । वायु की तिरछी गति है इसलिए वह गुरु लघु है और आकाश अगुरु लघु है । (१२२)
... व्यवहारतश्चतुर्धा भवति वस्तुनि बादरायण्येव ।। . . निश्चयतश्चागुरु लघु गुरु लघु चेति द्विभेद्येव ॥१२३॥ . बादर द्रव्य ही व्यवहार से चार प्रकार का है । परन्तु निश्चय नय से दो ही प्रकार के द्रव्य कहे हैं, १- गुरुलघु और २- अगुरु लघु । (१२३)
तत्रापि-बादरमष्ट स्पर्श द्रव्यं रूप्येव भवति गुरुलघुकम् । को अगुरु लघु चतुः स्पर्श सूक्ष्मं वियदाद्यमूर्तमपि ॥२४॥
वैक्रियमौदारिकमपि तैजसमाहारकं च गुरुलघुकम् । कार्मणमनो वचांसि सोच्छ्वासान्य गुरु लघुकानि ॥१२५॥