Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 627
________________ (५६०) इसमें भी बादर अष्टस्पर्श रूपी द्रव्य ही गुरु लघु होते हैं, सूक्ष्म चतुः स्पर्शी और अरूपी आकाश आदि तो अगुरु लघु है । वैक्रिय औदारिक, तैजस और आहारक - ये सब गुरु लघु हैं, जबकि उच्छ्वास युक्त कार्मण मन वचन - ये अगुरु लघु हैं । (१२४-१२५) तथोक्तम् - निच्छयओ सव्वगुरुं सव्वलहुं वा न विज्जए दव्वम् । . ववहारओ उ जुज्जइ वायर खंद्येसु नण्णेसु ॥१२६॥ अगुरु लह चउफासा अरुविदव्वा य होंति नायव्वा। सेसा उ अट्ठफासा गुरु लहुआ निच्छय नयस्स ॥१२७॥ ओरालिय वेउब्विय आहारग तेय गुरु लहू दव्वा। ... कम्मगमण भासाई एयाई अगुरु लहू आइं ॥१२८॥ इति भगवती वृत्तौ ॥ इति अगुरु लघु परीणामः ॥६॥ . श्री भगवती सूत्र की वृत्ति में कहा है कि - निश्चय नय की अपेक्षा से तो कोई द्रव्य सर्वथा गुरु अथवा सर्वथा लघु नहीं होता परन्तु व्यवहार नय से बादर स्कंध के विषय में वह घट सकता है, अन्य में नहीं घट सकता है । चतुः स्पर्शी अरूपी द्रव्य अगुरु लघु जानना । शेष अष्ट स्पर्शी द्रव्य निश्चय से गुरुलघु हैं । औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस द्रव्य गुरु लघु समझना और कार्मण द्रव्य तथा मन वचन आदि अगुरु लघु समझना । (१२६ से १२८) इस तरह अगुरु लघु परिणाम है । (६) वर्ण गन्ध रस स्पर्श संस्थानैर्मुख्य भावतः । प्रत्येकं चिन्तितैर्भेदाः स्युर्भूयां सोऽत्र ते त्वमी ॥१२॥ और इसके वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान को प्रधान रूप में लेकर विचार करे तो बहु-बहुभेद होते हैं । (१२६) एकस्योज्जवल वर्णस्य द्वौ भेदो गंध भेदतः । .. संस्थानैश्च रसैश्चापि पंच पंच भिदौ मताः ॥१३०॥ स्पर्शस्तथाष्ट भेदाः स्युरेवमेकस्य विंशतिः । इतीह पंचभिर्वर्णं भेदानां शतमाप्यते ॥१३१॥ संस्थानानां रसानां च प्राधान्ये नैवमिष्यते । शतं शतं विभेदानां ततो जातं शत त्रयम् ॥१३२॥

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