Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 629
________________ (५६२) . अथ दशमः शब्दपरीणामः। यो ऽ सौ शब्द परीणामो द्विधा सोऽपि शुभोऽशुभः। पुदगलानां परीणामा दशाप्येवं निरूपिताः ॥१३६॥ अब दसवें शब्द परिणाम के विषय में कहते हैं । यह शब्द परिणाम भी १. शुभ और 2. अशुभ इस तरह दो प्रकार का है । इस प्रकार से पुद्गल के दस परिणाम का निरूपण करते हैं । (१३६) . ... गन्ध द्रव्यादिवद्वातानुकू ल्येन प्रसर्पणात् । तादृशद्रव्य वच्छ्रोगौपघातकतयाऽपि च ॥१४०॥ . . ध्वनेः पौद्गलिकत्वं स्याद्यौक्तिकं यत्तु केचनः। .. मन्यन्ते व्योम गुणतां तस्य तन्नोपयुज्यते ॥१४१॥ (युग्मं ।) गंध पदार्थ के समान वायु की अनुकूलता से फैलती है। इसलिए तथा तादृश पदार्थ के समान कर्ण के ऊपर उपघात करता है । इसलिए शब्द को पुद्गलिक कहना योग्य ही है । कई अन्य दर्शनकारों ने इसे आकाश गुण कहा है। वह युक्त नहीं है । (१४०-१४१) . अस्य व्योम गुणत्वे तु दूरासन्नस्थ शब्दयोः ॥ श्रवणे न विशेषः स्यात् सर्वगं खलु यन्नभः ॥१४२॥ यदि शब्द को आकाश गुणी कहें तो नजदीक अथवा दूर के शब्दों को सुनने में अन्तर नहीं आना चाहिए क्योंकि आकाश सर्वव्यापी है । परन्तु अन्तर तो पड़ता ही है इसलिए यह शब्द आकाश गुणी नहीं है, ऐसा सिद्ध होता है । (१४२) यथा शब्दस्तथा छाया तपोद्योततमांस्यपि । सन्ति पौद्गलिकान्येवेत्याहुः श्री जगदीश्वराः ॥१४३॥ शब्द के समान छाया, धूप, प्रकाश और अन्धकार भी पौद्गलिक हैं । इस तरह श्री जिनेश्वर भगवान ने कहा है । (१४३) . यदादर्शादौ मुखादेः प्रतिबिम्बं निरीक्ष्यते । सोऽपि छाया पुद्गलानां परिणामो न तु भ्रमः ॥१४४॥ भ्रमो ज्ञानान्तर बाह्यः स्यान्नैतत्तु तथेक्ष्यते । . न च भ्रमः स्यात्सर्वेषां युगपत्पटु चक्षुषाम् ॥१४५॥ . . . .

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