Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 622
________________ (५८५) युग्म प्रदेशी प्रतर परिमंडल बीस परमाणु का इस तरह होता है . . . . .. जघन्यानि किलैतानि सर्वाण्युत्कर्षतः पुनः । अनन्ताणु स्वरूपाणि मध्यमान्य पराणि तु ॥८॥ उन स्थानों के जो परमाणु कहे हैं वह जघन्य से समझना । उत्कृष्टतः तो इनके अनन्त परमाणु हैं और मध्यम परमाणु वाले संस्थान भी होते हैं । (६८) तथोक्तमुत्तराध्ययन नियुक्तौ - परिमंडले य वट्टे तंसे चउरंस आयए चेव । घणपयर पढम वजं ओजपएसे य जुम्मे य ॥६६॥ पंचग बार सगं खलु सत्तग बत्ती सगं च वट्ट मि । ति य छक्कगपण तीसा चत्तारि य होंति तंसं मि ॥१००॥ नव चेव तहा चउरो सत्ता वीसा य अट्ट चउरंसे । तिग दुग पन्नरसेव य छच्चेव य आयए होंति ॥१०१॥ पण यालाबार सगं तह चेव य आययं मि संठाणे। वीसा चत्तालीसा परिमंडल एय संठाणे ॥१०२॥ उत्तराध्ययन सूत्र की नियुक्ति में कहा है कि - परिमंडल, वृत्त त्रिकोण, चतुष्कोण और आयत- इस तरह पांच प्रकार के संस्थान हैं । इसमें प्रथम चार के घन और प्रतर - ये दो भेद हैं जबकि पांचवें के घन, प्रतर और श्रेणि - इस तरह तीन भेद हैं और इन संस्थानों में पहले के अलावा चार ओज प्रदेशी और युग्म प्रदेशी दोनों हैं, जबकि पहला केवल युग्म प्रदेशी है । इसके होने से ... (अ) वृत्त संस्थान के चार भेद होते हैं । वह इस प्रकार हैं- १. पांच प्रदेशी, २. बारह प्रदेशी, ३. सात प्रदेशी और ४. बत्तीस प्रदेशी ।

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