Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 618
________________ (५८१) सप्तचिंशत्यणुजातं तावदभ्रांश संस्थितम् । 'ओज प्रदेशं हि घनचतुरस्त्रं भवेदिहं ॥७८॥ नव प्रदेशप्रतर चतुरस्त्रस्य तस्य वै । उपर्यधो नव नव स्थाप्यन्ते परमाणवः ॥७६।। जिसके सत्ताईस आकाश प्रदेश होते हैं और जो सत्ताईस परमाणु से हुआ हो वह ओज प्रदेशी चौरस घन कहलाता है । यह नौ प्रदेशी चौरस प्रतर के ऊपर और नीचे नौ नौ परमाणु की स्थापना करने से होता है । (७८-७६) अष्टव्योमांशावगाढं स्पष्टमष्ट प्रदेशकम् । युग्मं प्रदेशं तु घन चतुरस्त्रं भवेद्यथा ॥८॥ - चतुःप्रदेशप्रतर चतुरस्त्रस्य चोपरि । चतुः प्रादेशिकोऽन्योऽपि प्रतरः स्थाप्यते किल ॥१॥ जिसके आठ प्रदेश हों और आठ आकाश प्रदेश के अवगाह हों वह युग्म प्रदेशी चौरस घन कहलाता है । यह चार प्रदेशी चौरस प्रतर के ऊपर एक दूसरे चार प्रदेशी प्रतर की स्थापना करने से होता है । (८०-८१) .. ओज प्रदेशजं श्रेण्यायतं स्यात्रिप्रदेशजम् । त्र्यंशावगाढमणुषु त्रिषु न्यस्तेषु संततम् ॥२॥ जिसके तीन प्रदेश हों और तीन आकाश प्रदेशों का अवगाह हो वह ओज प्रदेशी श्रेण्यायत कहलाता है। यह तीन परमाणु की स्थापना करने से होता है । (८२) निरन्तरं स्थापिताभ्यामणुभ्यां द्विप्रदेशजम् । युग्म प्रदेशजं श्रेण्यायतं द्वयभ्राशं संस्थितम् ॥३॥ जिनके दो प्रदेश हों और वह दो आकाश प्रदेशों को अवगाह करके रहा हो वह युग्म प्रदेशी श्रेण्यायत कहलाता है । यह सर्वथा अन्तर बिना दो परमाणु की स्थापना करने से होता है । (८३). .. ओज प्रदेशं प्रतरायतं पंचदशांककम् । तावद्व्योमांशावगाढमित्थं तदपि जायते ॥४॥ पंक्ति त्रयेऽपि स्थाप्यन्ते पंच पंचाणवस्तदा । ओज प्रदेश जनितं भवति प्रतरायतम् ॥८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634