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विषयमात्रा निरूपणार्थ चोच्यते । • निद्धस्स निद्धेण दुयाहिएण । लुख्खस्स लुख्खेण दुयाहिएण। निद्धस्स लुख्खेण उवेति बंधो । जहन्नवज्जो विसमो समो वा ॥२८॥
विषय मात्र के निरूपण के लिए इस तरह कहा है कि - स्निग्ध स्निग्ध की अथवा रूखा रूखा की सम या विषम मात्रा (एक दूसरे से) दो अधिक हो तभी बंध होता है । जब स्निग्ध और रूखे की जघन्य को छोड़कर सम या विषम केवल हो तो बन्ध होता है । (२८)
जीर्णमद्यगुडादीनां भाजने स्त्यानता तु या । स पात्र प्रत्ययः संख्य कालो वान्तर्मुहूर्तिकः ॥२६॥
यह बन्ध प्रत्यय कहा 1 अब पात्र प्रत्यय कहते हैं कि जिस बर्तन के अन्दर जीर्ण मद्य अथवा गुड़ आदि का स्थापन रूप रहता है वह पात्र प्रत्यय विस्रसाबंध कहलाता है । इसकी स्थिति संख्यकाल या अन्तर्मुहूत्त की है । (२६)
परिणाम प्रत्ययस्तु सौऽभ्रादीनामने कंधा । जघन्यश्चैक समयं षण्मासान् परमः पुनः ॥३०॥
. .. इति विस्रसाबन्धः॥ ... अब तीसरा परिणाम प्रत्यय है । मेघ आदि का बंध परिणाम प्रत्यय (विस्रंसा बंध) है, वह अनेक प्रकार का है। इसका स्थिति काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छः मास का है । (३०) . इस तरह पुद्गल के विस्रसाबंध का स्वरूप कहा ।
अथ प्रयोगबन्धो यः स चैषां स्याच्चतुर्विधः ।
आलापनश्चालीनश्च शारीर तत्प्रयोगको ॥३१॥ . अब इसका दूसरे भेद प्रयोगबंध के विषय में कहते हैं । पुद्गल का प्रयोगबन्ध चार प्रकार का है - १- आलापन, २- आलीन, ३- शरीर और ४प्रयोगक। (३१)
तृण काष्ठादि भाराणां रज्जु वेत्रलतादिभिः । संख्य कालानतर्मुहूतौ बन्ध आलापनाभिधः ॥३२॥
रज्जु या वेत्रलता आदि से तृण अथवा काष्ठ के भार को बांधना, इसके पहले आलापबंध की उत्कृष्ट स्थिति संख्यात काल की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है । (३२)