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पुद्गलस्यान्तरावस्त्वन्तरं संस्पृशतो गतिः । यासौ भवेत् संस्पृशन्ती द्वितीया स्यात्ततोऽन्यथा ॥४५॥
पूर्व में पुद्गलों के दस प्रकार के परिणाम गिनाये हैं । उसमें यह गति परिणाम दूसरा भेद कहा है । अतः गति के परिणाम के विषय में कहते हैं । पुद्गल की गति दो प्रकार की है - १- स्पर्श करती और २- स्पर्श न करती । पुद्गल का अपनी गति के समय बीच-बीच में अन्य वस्तुओं से स्पर्श होता है तो वह गति स्पर्श गति है और बीच में किसी वस्तु का स्पर्श न हो तो वह गति अस्पर्श गति है । (४४-४५) अथवा-द्विधा गति परीमाणो दीर्घान्यगति भेदतः । ..
दीर्घ देशान्तर प्राप्ति हेतुराद्योऽन्यथापरः ॥४६॥ .... अथवा दीर्घगति और ह्रस्वगति - इस तरह भी गति परिणाम के दो भेद होते हैं। दूर देशान्तर पहुँचने का हेतु रूप यह प्रथम भेद है और इससे उलटा यह दूसरा भेद है । (४६)
एकेन समयेनैव पुद्गलः किल गच्छति । .. लोकान्तादन्य लोकान्तं गतेः परिणतेर्बलात् ॥४७॥
गति परिणाम के बल से पुद्गल लोक के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक एक ही समय में जा सकता है । (४७)
तथाहु "परमाणु पुग्गलेणं भंतें लोगस्स पुंरिच्छिमिल्ला तो चरिमंताओ पच्चच्छिमिल्लं चरिमंतं एक समयेणं गच्छति दहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लंचरिमंतं उत्तरिल्लाओ चरिमंताओदाहिणिल्लं चरिमंतं उवरिल्लाओ चरिमंताओ हेठिल्लचरिमंतं हेठिल्लाओ चरिमंताओ उवरिल्लं चरिमंतं एगेणं समएणं गच्छति हंता गोयमा जाव गच्छति ॥".
इति भगवती सूत्रे शतक १६ उद्देश ८॥
इति गति परिणाम ॥२॥ श्री भगवती सूत्र के सोहलवें शतक आठवें उद्देश में श्री गौतम ने पूछा कि - "हे भगवन्त लोकपूर्वान्त से पश्चिमान्त तक, दक्षिणान्त से उत्तरान्त तक, उत्तरान्त से दक्षिणान्त तक, उर्ध्वान्त से अध:अन्त तक और अध:अन्त से ऊर्ध्वान्त तक परमाणु पुद्गल क्या एक ही समय में जाता है?" तब भगवन्त ने कहा - "हे गौतम ! हां एक समय में सर्व स्थान पर पहुंच जाता है।" .