Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 615
________________ (५७८) जिसमें चार प्रदेश चार दिशा में रहते हों और एक प्रदेश बीच में हो वह ओज प्रदेशी प्रतर वृत्त कहलाता है । (५४) युग्मं प्रदेशं प्रतरवृत्तं च द्वादशाणुकम् । तावदभ्रांशावगाढं तच्चैवमिह जायते ॥५५॥ युग्म प्रदेशी प्रतरवृत्त बारह परमाणु वाला होता है और वह बारह आकाश प्रदेश के अवगाही के कारण होता है । (५५) चतुर्श्वभ्र प्रदेशेषु चत्वारोंशा निरन्तरम् । स्थाप्यन्ते रूचकाकारास्तपरिक्षेपतस्ततः ॥५६॥... द्वौ द्वौ चतुर्दिशं स्थाप्यौ प्रदेशौ जायते ततः । ... युग्म प्रदेशं प्रतर वृत्तमुक्तं पुरातनैः ॥५७॥ (युग्म।) . . वह इस तरह से - दोनों चार आकाश प्रदेश के अन्दर अन्तर बिना चार । रूचकाकार अंश स्थापन करना और इसके बाद इनका परिक्षेप पूर्वक चारों : दिशाओं में दो दो प्रदेश स्थापना करना, इसे पूर्वोक्त युग्म प्रतरवृत्त कहते हैं । (५६-५७) सप्ताणुकं सप्तखांशावगाढं च भवेदिहं । ओज प्रदेश निष्पन्नं घनवृत्तं हि तद्यथा ॥५८॥ पंच प्रदेशे प्रतर वृत्ते किल पुरोदिते । अध ऊर्ध्व च मध्याणोरेकैकौऽणुर्निवेश्यते ॥५६॥ सात परमाणु वाला और सात आकाश प्रदेश अवगाही कर रहता हैं वह ओज प्रदेशी घनवृत्त कहलाता है । वह पूर्वोक्त पांच प्रदेशी प्रतरवृत्त में नीचे, ऊंचे और मध्य परमाणु में एक एक परमाणु की स्थापना करने से होता है । (५८-५६) द्वात्रिंशदणु संपन्नं तावत्खांशावगाढकम् । युग्म प्रदेशं हि घनवृत्तं भवति तद्यथा ॥६०॥ युग्म प्रदेशी घनवृबत्तीस परमाणु का बना और बत्तीस आकाश प्रदेश का अवगाहन करके रहता है । (६०) उक्त प्रतर वृत्तस्य द्वादशांशात्मकस्य वै । उपरिष्ठात् द्वादशान्ते स्थाप्यन्ते परमाणवः ॥६१॥ ततः पुनर्मध्वमाणु चतुष्कस्याप्युपर्यधः । स्थाप्यन्ते किल चत्वारश्चत्वारः परमाणवः ॥६२॥ (युग्म।)

Loading...

Page Navigation
1 ... 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634