Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 611
________________ (५७४) चतुर्धा लीन बन्धस्तु प्रथमः श्लेषणभिधः । समुच्चयोच्चयो बन्धौ तुर्यः संहननाभिधः ॥३३॥ दूसरे आलीन बंध के और चार भेद होते हैं - १. श्लेषण, २. समुच्चय, ३. उच्चय और ४. संहनन । (३३) यः कुडय कुट्टिमस्तम्भघटकाष्ठादि वस्तुषु । सुधामृत्यं कलाक्षाद्यैर्बन्धः स श्लेषणाभिधः ॥३४॥ . दिवार के घुमाने सम्बन्धी, स्तंभ, घट, काष्ट आदि में चूना, मिट्टी, पंक, लाख आदि एक-एक का बंध है अर्थात् ये वस्तु लगाना श्लेषण बंध कहलाता है। (३४) तटाक दीर्घिकावप्रस्तुपदेवकुलादिषु । ..... बन्धः सुधादिभिर्यः स्यात् बहूनां स समुच्चयः ॥३५॥ तथा तलाब, बावड़ी, कुआं, कोट स्तूप, देवमंदिर आदि में चूना आदि अधिक वस्तु का बंध-लगाना वह समुच्चय 'बंध है । (३५) तृणावकर काष्ठानां तुषगोमय भस्मनाम् । उच्चत्वेन च यो बन्धः स स्यादुच्चय संज्ञकः ॥३६॥ . खंड- टुकड़े, कूड़ा, कचरा, तृण, लकड़ी, गोमय, और राख आदि का ऊँचा ढेर किया हो, वह उच्चयबंध कहलाता है । (३६) . द्विधा संहननाख्यस्तु देश. सर्व विभेदतः । तत्राद्यः शकटांगादौ परः क्षीरोदकादिषु ॥३७॥ अब आलीप के चौथा भेद संहनन बंध के दो भेद हैं । गाड़ी के अंगों का - एकत्र बंधन - यह प्रथम का दृष्यन्त है तथा क्षीर में पानी का बंध-मिलाना - यह दूसरे भेद का दृष्टान्त समझना । (३७) आरभ्यालापनादेषा जघन्योत्कर्षतः स्थितिः । अन्तर्मुहूर्त संख्यात् कालौ ज्ञेया विचक्षणैः ॥३८॥ आलापन बन्ध के समान चार प्रकार के आलीन बन्ध की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट संख्यात काल की जाननी चाहिए । (३८) • द्विधा शरीर बन्धः स्यादेकः पूर्व प्रयोगजः । प्रत्युत्पन्न प्रयोगोत्थः परः सोऽभूतपूर्वकः ॥३६॥

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