Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 609
________________ (५७२.) अर्थात् हे भगवन्त! परमाणु पुद्गल शाश्वत है या अशाश्वत है ? इसका उत्तर भगवन्त देते हैं - गौतम ! यह शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है और पर्याय की अपेक्षा से अशाश्वत है । पुद्गलानां दशविधः परिणामोऽथ कथ्यते । बन्धनाख्यो गति नामा संस्थानाख्यस्तथापरः ॥२२॥ भेदाख्याः परिणामः स्यात् वर्णगन्धरसाभिधाः । स्पर्शोऽगुरुलघुः शब्दः परिणामा दशेत्यमी ॥२३॥ अब पुद्गल के दस प्रकार के परिणाम हैं । उनके नाम कहते हैं १. बंधन, २. गति, ३. संस्थान, ४. भेद, ५. वर्ण, ६. गंध, ७. रस, ८. स्पर्श, ई. अगुरुलघु और १०. शब्द । (२२-२३) स्याद्विस्त्रसा प्रयोगाभ्यां बन्धः पौद्गलिको द्विधा । तत्र यो विस्त्रसाबन्धः सोऽपि त्रिविधं इष्यते ॥२४॥ बन्धन प्रत्यय: पात्र प्रत्ययः परिणामजः । बन्धन प्रत्ययस्तत्र स्कन्धेषु द्वयणुकादिषु ॥ २५ ॥ भवेद्धि द्वयणुकादीनां विमात्र सनैग्ध्य रौक्ष्यतः । मिथो बन्धोऽसंख्यकालमुत्कर्षात्समयोऽन्यथा ॥२६॥ और इसमें बन्धन के दो भेद हैं १. विस्रसाबंध और २. प्रयोगबंध । विस्रसाबंधन के तीन उपभेद हैं- बंधन प्रत्यय, पात्र प्रत्यय और परिणामज । बंधन प्रत्यय (विस्रसा बंध) द्वयणुकादिक स्कंधों में होता है और विषम मात्रा में स्निग्धता और रुक्षता हो तो द्वयणुकादिक का परस्पर सम्बन्ध होता है, और वह उत्कृष्टतः असंख्यकाल का और जघन्य एक समय का होता है । ( २४ से २६) यदाहुः - समनिद्धयाए बन्धो न होइ सगलुखखयाए वि न होई । वे माय निद्ध लख्खत्तणेण बन्धा उ खंधाण ॥२७॥ कहा है कि- स्निग्ध रूप या रुक्षरूप की सम मात्रा हो तो बंधन नहीं होता, बंध होने के लिए तो स्निग्धता व रुक्षता की विषम मात्रा होनी चाहिए । (२७)

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