Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 608
________________ (५७१) वर्ण गन्ध स्पर्श रहितश्चाथ भावतः । द्रव्याणुरेव वर्णादि भाव प्राधान्यतो मतः ॥१७॥ भावाणुरथवा सर्वजघन्य श्यामतादिकम् । इह प्रयोजनं द्रव्यपरमाणुभिरेव हि ॥१८॥. - इति भगवती शतक २० उद्देश ५॥ भाव को लेकर परमाणु का चौथा भेद भावाणु है । इसके लक्षण वर्ण रहित, गंध रहित, रस रहित और स्पर्श रहित रूप हैं । वर्णादि भाव की प्रधानता को लेकर द्रव्य-अणुज अभिमत है अथवा भाव अणु अर्थात् सर्व मेंजघन्य श्यामत्व आदि है। हमारे लिए तो यहां द्रव्य-अणु (द्रव्यं परमाणु) की ही बात है । (१७-१८) इस तरह की बात भगवती सूत्र में २०वें शतक के पांचवें उद्देश में कही है। स नित्यानित्य रूपः स्यात् द्रव्यपर्याय भेदतः । तत्र च द्रव्यतो नित्यः परमाणोरनाशतः ॥१६॥ पर्यायतस्त्वनित्योऽसौ यतो वर्णादि पर्यवाः । नश्यन्त्येके भवन्त्यन्ये विस्रसादि प्रभावतः ॥२०॥ परमाणु के और दो भेद होते हैं - १. द्रव्य से नित्य है, क्योंकि परमाणु अविनाशी है । २. पर्यायतः अनित्य है, क्योंकि विस्रसा अर्थात् सड़न, गलन, पतन, विध्वंस आदि के प्रभाव से कई वर्णादि का नाश होता है और उनके स्थान पर दूसरे उत्पन्न होते हैं । (१६-२०) - अस्य शाश्वत भावेन केचित् पर्यव नित्यताम् । मन्यन्ते तद सद्यस्मात् पंचमांगे स्फुटं श्रुतम् ॥२१॥ - परमाणु शाश्वत है इसलिए इसके पर्याय नित्य होने चाहिएं - ऐसा कईयों का कहना है । परन्तु यह वास्तविकता नहीं है क्योंकि पांचवे अंग भगवती सूत्र में इस तरह का स्पष्ट पाठ है । (२१) परमाणु पुग्गलेणं भतो सासए असासए । गोयम सिअ सासए सिअ असासए॥सेकेणटेणंभंते एवं वुच्चति।गोअमदव्वट्ठयाए सासए पज्जवट्ठयाए असासए ॥ इति ॥ . .

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