Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 606
________________ (५६६) सूक्ष्म स्थूल परिणामाः स्युः प्रत्येकमनन्तकाः । एक क्षणाद्यसंख्येय कालान्तस्थिति शालिनः ॥७॥ और इसमें प्रत्येक जाति के अनन्त, छोटे, सूक्ष्म और स्थूल परिणाम वाले हैं और स्थिति किसी-किसी की एक क्षण की होती है और किसी-किसी की इससे बढ़ते हुए वह अन्तिम में असंख्य काल तक भी होती है । (७) द्विप्रदेशादिकोऽनन्तप्रदेशान्तो विवक्षितः । स्कन्धसम्बद्धो विभागः स भवेत् देश संज्ञकः ॥८॥ दो प्रदेश से लेकर अन्तिम अनन्त प्रदेश तक का स्कंधबद्ध जो विभाग है उसका नाम 'देश' कहलाता है। (८) ... निर्विभाज्यो विभागो यः स्कन्धसंबद्ध एव् हि । परमाणु प्रमाणोऽसौ प्रदेश इति कीर्तितः ॥६॥ अविभाज्य और केवल स्कंधबद्ध जो परमाणु प्रमाण विभाग है इसका नाम प्रदेश कहलाता है । (६). ___कार्य कारण रूपाः स्युर्द्विप्रदेशादयो यथा । • द्विप्रदेशो द्वयोरण्बोः कार्य व्यणुक कारणम् ॥१०॥ ऊपर द्वि प्रदेशी आदि जो स्कन्ध कहा है वह कार्य रूप भी है और किसी को कारण रूप भी है । जैसे द्वि प्रदेशी (स्कंध) दो परमाणुओं का कार्य है वैसे ही तीन.परमाणुओं का कारण भी है । (१०) परमाणुस्त्व प्रदेशः प्रयत्क्षो ज्ञान चक्षुषाम् । कार्यानुमेयोऽकार्यश्च भवेत्कारणमेव स ॥११॥ परमाणु अप्रदेशी है और केवल ज्ञानचक्षु का ही गोचर है और यह कार्य अनुमेय है, स्वयं किसी का कार्य नहीं है यद्यपि वह किसी का कारणभूत तो है । (११) - यदाहु:- कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । - एक रसवर्ण गन्थो द्विस्पर्शः कार्यलिंगश्च ॥१२॥ .

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