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विशेषतस्तु क्षेत्रलोके वक्ष्यते । इति अनन्तराप्ति
॥१५॥ इनकी अनन्तराप्ति के विषय में कहते हैं- सामान्यतः नारकी अनन्तर जन्म में सम्यकत्व, देवविरति, सर्वविरति और मोक्ष तक प्राप्त कर सकता है। इस सम्बन्ध में विशेष बातें क्षेत्रलोक में कही जायेंगी। (१४)
यह अनन्तराप्ति द्वार है। (१५) उद्धत्यौघान्नारकेभ्यो लब्ध्वा नर भवादिकम् । यद्येक समये यान्ति शिवं तर्हि दश ध्रुवम् ॥१॥ प्रत्येक माद्यनरक त्रयोद्धता अमी. मुनः । सिद्धिं यान्ति दश दश तुर्योद्धतास्तु पंच ते ॥१६॥
इति समये सिद्धिः ॥१६॥ अब इनकी समय सिद्धि के विषय में कहते हैं- ओघ से सात नरक में से निकले हुए मनुष्य जन्म आदि प्राप्त करें तो इनमें से एक समय में केवल दस सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक नरक की अलग गिनती करें तो प्रथम तीन नरक में से प्रत्येक से निकलकर दस-दस मोक्ष में जाते हैं और चौथे में से निकलकर पांच सिद्धि प्राप्त करते हैं। उसके बाद निकले मोक्ष नहीं जाते। (१५-१६)
यह समय सिद्धि द्वार है। (१६) लेश्यास्तिस्त्रो भवन्त्याद्या षडाहार दिशोऽपि च । . न संहनन सद्भावः कषाया निखिला अपि ॥१७॥
इति द्वार चतुष्टयम् ॥१७ से २०॥ इनकी लेश्या प्रथम तीन होती हैं तथा छः दिशा में आहार होता है और संहनन-संघयण नहीं होता तथा कषाय सारे होते हैं। (१७)
ये चार द्वार हैं। (१७ से २०) संज्ञा सर्वाश्चेन्द्रियाणि सर्वाण्येषां च संज्ञिता । दीर्घकालिक्यादिमत्वाद्वयक्त संज्ञतयाऽपि च ॥१८॥
इति द्वार त्रयम ॥२१ से २३॥