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जघन्योत्कृष्टायुरुत्थ चतुर्भग्यामपि स्फुटम् । भवान् कृत्वाष्ट नवमे तेऽन्यं पर्यायमाप्नुयुः ॥६२॥
जघन्य और उत्कृष्ट आयु से होने वाली चौभंगी में भी वह आठ जन्म लेकर के नौंवें जन्म में निश्चय अन्य पर्याय प्राप्त करता है । (६२)
. तथैव एव पृथ्व्यादि पंचके विकलत्रये । . . __जायमानाश्चतुर्भग्यां कुर्युः प्रत्येकमष्ट तान् ॥६३॥
तथा इनमें प्रत्येकपृथ्वी काय आदि पांच में तथा विकलेन्द्रिय में उत्पन्न होने पर चौभंगी के अन्दर आठ जन्म धारण करता है । (६३)
तथा माद्याः सविकलास्तिर्यक्षु संग्य संज्ञिषु । . नृष्व युग्मिषु चोत्पद्यमाना भंगचतुष्टये ॥६४॥ . पूरयन्ति भवानष्टौ स च पृथ्व्यादिकोऽसुमान् । नर तिर्यग् भवात्तस्मान्न पृथ्व्यादित्वमाप्नुयात् ॥६५॥ युग्मं ।
और विकलेन्द्रिय सहित पृथ्वीकाय आदि, संज्ञी और असंज्ञी तिर्यंच में तथा युगलिक रहित मनुष्य में उत्पन्न होकर चार विभाग में आठ जन्म पूर्ण करता है और वह पृथ्वीकाय आदि जीव मनुष्य और तिर्यंच के जन्म से पृथ्वीत्व आदि प्राप्त नहीं करता है । (६४-६५)
जघन्यादुत्कर्षतोऽपि मनुष्याः पवनाग्निषु । उत्पद्यमाना द्वावेव पूरयन्ति भवौ खलु ॥६६॥ यतो हि पवनाग्निभ्य उध्धृतानां शरीरिणाम् । अनन्तर भवे नैव नरेषूत्पत्ति सम्भवः ॥६७॥ .
मनुष्य वायुकाय और अग्निकाय में उत्पन्न होकर उत्कृष्टतः तथा : जघन्यतः दो ही जन्म करता है क्योंकि वायुकाय और अग्निकाय से निकले हुए प्राणी को अनन्तर जन्म में मनुष्य गति प्राप्त करना असंभव है । (६६-६७)
यथोक्ता नामथ भवसंवेधानां यथागमम् । कालमानं विनिश्चेतुमाम्नायोऽयं वितन्यते ॥१८॥
अब उक्त संवेध का आगमोक्त कालमान निश्चित करने के लिए इस तरह आम्नाए कही हैं । (६८)