Book Title: Lokprakash Part 01
Author(s): Padmachandrasuri
Publisher: Nirgranth Sahitya Prakashan Sangh

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Page 570
________________ (५३३) जैसे कि पहले नरक में उत्कृष्ट आयुष्य वाला- नरकत्व की उत्कृष्ट आयुष्य प्राप्त करने वाले मनुष्य का उत्कृष्ट भवसंवेद्य काल चार करोड़ पूर्व और चार सागरोपम का होता है । (८१-८२) द्वयोरुत्कृष्टायुषोस्तु संवेधः स्याज्जघन्यतः । --- पूर्व कोटि समधिक सागरोपम संमितः ॥३॥ दोनों गति के उत्कृष्ट आयुष्य वालों का संवेधकाल जघन्यतः एक करोड़ पूर्व और सागरोपम का है । (८३) उत्कृष्टायुर्नरलघु स्थिति नारकयोः गुरुः । सोऽब्दायुत चतुष्काढ़यं पूर्व कोटि चतुष्ट यम् ॥४॥ उत्कृष्ट आयुष्य वाले मनुष्य और जघन्य स्थिति वाले नारकी का उत्कृष्ट भवसंवेद्य काल चार करोड़ पूर्व और चालीस हजार वर्ष का है । (८४) . उत्कृष्टायुर्नर लघुस्थिति नारकयोः लघुः । संवेधोऽब्दा युत युत पूर्व कोटिमितो मतः ॥८५॥ उत्कृष्ट आयुष्य वाले मनुष्य और जघन्य स्थिति वाले नारकी का जघन्य भवसंवेध काल करोड़ पूर्व और दस हजार वर्ष का है । (८५) ... जघन्यायुर्नरोत्कृष्ट स्थिंति नारकयोः गुरुः । चतुर्मास पृथक्त्वाढचं स स्याद्वर्धिचतुष्टयम् ॥८६॥ जघन्य आयुष्य वाले मनुष्य और उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकी का उत्कृष्ट भवसंवेद्य काल चार सागरोपम और अलग चतुर्मास है । (८६) जघन्यायुर्नरोत्कृष्ट जीवि नारकयोः लघुः । ...'. एक मास पृथकत्वाढयवार्द्धिमानो भवत्यसौ ॥८७॥ ... जघन्य आयुष्य वाले मनुष्य और उत्कृष्ट आयुष्य वाले नारकी का जघन्य भवसंवेद्यकाल एक सागरोपम और अलग मास (महीने) का है । (८७) उत्कृष्टो भवसंवेधो जघन्य जीविनोः द्वयोः । . चतुर्मास पृथकत्वाढयं वर्षायुत चतुष्टयम् ॥१८॥ यदि दोनों जघन्य आयुष्य वाले हो तो उनका उत्कृष्ट भवसंवेद्य काल चालीस हजार वर्ष और अलग चतुर्मास है । (८८)

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