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(५४७) स्थावर सूक्ष्मापर्याप्तकानि साधारणास्थिरे अशुभम् ।
दुःस्वरदुर्भगनाम्नी भवत्यनादेयमयशश्च ॥१७३॥
स्थावर आदि दस इस तरह हैं- स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और अपयश । (१७३)
द्वितीयं दशकं चैतत् पराघाताष्टकं त्विदम । · पराघातं तथोच्छ्वासा तपोद्योताभिधानि च ॥१७४॥
भवत्यगुरुलध्वाख्यं तीर्थ कुन्नाम कर्म च । निर्माणमुपघातं च द्विचत्वारिंशदित्यमी ॥१७५॥
पराघात आदि आठ इस तरह हैं- पराघात, उच्छ्वास, आतप उद्योत, अगुरुलघु, तीर्थंकरकर्म, निर्माण और उपघात । इस प्रकार दो दशक और ये आठ = १०+ १०+८ = २८ और चौदह प्रकृति अतः बयालिस भेद होते हैं। (१७४-१७५)
चतुर्दशोक्ता गत्याद्याः पिण्ड प्रकृतयोऽत्र याः । पंचषष्टि स्युरेवं ताः प्रतिभेद विवक्षया ॥१७६॥
पूर्व में गति आदि जो चौदह पिंड प्रकृतियां कही हैं उनमें भी वापिस प्रतिभेद है अतः इस विवक्षा से पैंसठ भेद होते हैं । वह इस तरह से । (१७६)
- गतिश्चत्तुर्धा नरक तिर्यङ् नर सुरा इति । ... एक द्वि त्रि चतुः पंचेन्द्रियाः पंचेति जातयः ॥१७७॥
गति के चार भेद हैं- नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव । जाति के पांच भेद हैंएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । (१७७)
.. देहान्यौदारिकादीनि पंच प्रागुदितानि वै । ... विधांगोपांगानि तेषां विना तैजस कार्मणे ॥७॥
शरीर के पांच भेद कहे हैं, वह औदारिक आदि पांच पूर्व में कह गये हैं। अंगो- पांग के तीन प्रकार हैं- औदारिक, वैक्रिय, आहारक । (१७८)
तत्रांगानि बाहुपृष्टोरूरोमूर्धादिकानि वै । अंगुल्यादीन्युपांगानि भेदोऽङ्गोपाङ्गयोरयम् ॥१७६॥ नखांगुली पर्वरेखा प्रमुखान्यपराणि च । अंगोपांगानि निर्दिष्टान्युत्कृष्ट ज्ञान शालिभिः ॥१०॥ बाहु, पृष्ट, अरु (छाती), हृदय, मस्तक आदि अंग कहलाते हैं और