________________
(५४६) १०. औदारिक तैजस कार्मण, ११. वैक्रिय तैजस कार्मण, १२. आहारक तैजस कार्मण, १३. तैजस तैजस, १४. तैजस कार्मण और १५. कार्मण कार्मण । (१८४ से १८८)
कार्मणकार्मणं चेति स्युः पंचदश तानि हि । तत्र पूर्व संगृहीतैर्यदौदारिक पुद्गलैः ॥१८६॥ गृह्यमाणौदारिकांगपुद्गलानां परस्परम् । सम्बन्धकृतदौदारिकौदारिकाख्यबन्धनम् ॥१६०॥
ये जो पंद्रह भेद हैं वे सब पूर्व में संग्रह कर रखे औदारिक पुद्गलों के साथ में, अन्य नये गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का सम्बन्ध परस्पर घटा देते हैं । इस बन्धन का नाम औदारिक औदारिक बन्धन है । (१८६-१६०)
एवंच-औदारिक पुद्गलानां सह तैजस पुद्गलैः। सम्बन्ध घटकं त्वौदारिकतैजस सबन्धनम् ॥१६॥
इसी तरह से औदारिक पुदगलों के साथ में तैजस पुद्गलों का सम्बन्ध करवा देता है। इसका नाम औदारिक तैजस बंधन है ।(१६१)
औदारिक पुद्गलानां सह कार्मण पुद्गलैः । सम्बन्धकृत भवत्यौदारिककार्मण बन्धनम् ॥१६२॥
औदारिक पुद्गलों के साथ में कार्मण पुद्गलों का सम्बन्ध करवा देने . वाला बन्धन औदारिक कार्मण बन्धन कहलाता है । (१६२) . भावनैवं वैक्रिय वैक्रियादि बन्धनेष्वपि । . स्वयं विचक्षणैः कार्यादिङ्मानं तु प्रदर्शितम् ॥१६३॥ - इसी तरह से वैक्रिय वैक्रिय आदि अन्य बन्धनों के विषय में भी विचक्षण पुरुषों को स्वयंमेव भावना-विचार कर लेना चाहिए । यहां हमने तो केवल दिग्दर्शन करवाया है । (१६३)
षटकं संहननानां संस्थानानां षट्कमेव च । वर्णाः पंच रसाः पंचाष्टौ स्पर्शा गन्धयोर्द्वयम् ॥१६४॥
संघयण के छः भेद हैं । संस्था के भी छः भेद हैं, वर्ण पांच प्रकार का है, रस पांच हैं, स्पर्श आठ हैं और गंध दो प्रकार की है । (१६४)