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अनेक प्रकार की मणियों के गुण पहिचानने वाला व्यापारी जैसे पूर्ण भरी हुई दुकान में से, दीपक की ज्योति से सुन्दर-सुन्दर मोतियों को छांट-छांट कर ग्रहण करता है वैसे ही मैंने श्री गुरुदेव की कृपा से सिद्धांत में से यह मनुष्य सम्बन्धी बातें छांटकर इनका सम्यक् प्रकार से वर्णन किया है। (१२४)
विश्वाश्चर्यद कीर्ति कीर्ति विजय श्री वाचकेन्द्रां तिषद्राज श्री तनयोऽनिष्ट विनयः श्री तेजपालात्मजः । काव्यं यत्किल तत्र निश्चित जगत्तत्व प्रदीपोपमे । निर्गलितार्थ सार्थ सुभगः पूर्णः सुखं सप्तमः ॥ १२५ ॥ इति मनुष्याधिकार रूपः सप्तमः सर्गः ।
तीन जगत् के मनुष्यों को आश्चर्यचकित करने वाली कीर्ति के स्वामी वाचकवर्य के स्वामी श्री कीर्ति विजय जी के शिष्य और माता राजश्री तथा पितातेजपाल के कुलदीपक विनय विजय उपाध्याय ने सारे जगत् के सत्यपूर्ण तत्वों, को प्रकाशमय करने वाला जो यह लोकप्रकाश ग्रन्थ रचा है, उसके अन्दर से सारांश शब्दार्थ के कारण मनोरंजक सातवां सर्ग विघ्न रहित समाप्त हुआ। (१२५) ॥ सातवां सर्ग समाप्त ॥