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आठवां सर्ग • सुराश्चतुर्धा भवनव्यन्तर ज्योतिषा अपि ।
वैमानिका इति प्रोक्तास्तान्प्रभेदैरथ बुवे ॥१॥
आठवें सर्ग में चार प्रकार के देवों का वर्णन है - १- भवनपति, २- व्यन्तर, ३- ज्योतिषी और ४- वैमानिक तथा इनके उपभेद भी हैं । अब उसे कहेंगे। (१)
दशधा भवनेशाशासरनाग सपर्णकाः । विद्युदग्नि द्वीप वार्धिदिग्वायुस्तनिता इति ॥२॥
- एते च सर्वे कुमारोपपदा इति ज्ञेयम् ॥ भवनपति के दस भेद हैं- वह इस प्रकार, १- असुर कुमार, २- नाग कुमार, ३- सुपर्ण कुमार, ४- विद्युत कुमार, ५- अग्नि कुमार, ६- द्वीप कुमार, ७- समुद्र कुमार, ८- दिग् कुमार, ६- वायु कुमार और १०- मेघ कुमार। (२)
यहां सब में कुमार शब्द उपयोग होता है। परमाधार्मिकाः पंचदशधाः परिकीर्तिताः । यथार्थैर्नामभिः ख्याता अम्बप्रभृतयश्च ते ॥३॥ अम्बाम्बरीषशबल श्याम रौद्रौपरू द्रकाः । असिपत्र धनुः कुम्भा महाकालश्च कालकः ॥४॥
वैतरणो वालकश्च महाघोषः खरस्वरः । .. एतेऽसुर निकायान्तर्गताः पंचदशोदिताः ॥५॥
उसमें प्रथम असुर कुमार में पंद्रह प्रकार के जो परमाधामी देव होते हैं उनका.समावेश होता है । इनके यथार्थ नाम इस प्रकार हैं- १- अम्ब, २- अम्बरीष, ३- शबल, ४- श्याम, ५- रौद्र, ६- उपरुद्र, ७- असिपत्त, ८- धनु, ६- कुम्भ, . १०- महाकाल, ११- काल, १२- वैतरण, १३- वालुका, १४- महाघोष और १५- खरस्वर। ये सब असुर कुमार के अन्तर्गत पंद्रह भेद हैं। (३ से ५)
नीत्वोज़ पातयत्याद्यो नारकान् खंडशः परः । करोति भ्राष्ट्रपाकाहा॑न् तृतीयोऽन्त्रहृदादिभित् ॥६॥ शातनादि करस्तेषां तुरीयः पंचमः पुनः । कुन्तादौ प्रोतकस्तेषां षष्टोऽङ्गोपांग भंग कृत् ॥७॥