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(५१३)
नौंवां सर्ग
अथा नारकाः
रत्नशर्करा वालुकापंक धूमतमः प्रभाः । · महातमः प्रभैतज्जाः सप्तधा नारका मताः ॥१॥
नौंवें सर्ग में नरक का स्वरूप का वर्णन करते हैं। नरक सात हैं; १ - रत्न प्रभा, २- शर्करा प्रभा, ३- वालुका प्रभा, ४- पंक प्रभा, ५ - धूम प्रभा, ६- तमः प्रभा और ७- महातमः प्रभा। इन सात नरकों में उत्पन्न होने से सात प्रकार के नारकी कहे हैं। (१)
पर्याप्तापर भेदेन चतुर्दश भवन्ति ते । स्थानोत्पात समुद्घातैर्लोका संख्यांश वर्तिनः ॥२॥ स्व स्थानतस्त्वधोलोकस्यैक देशे भवन्त्यमी । विशेष स्थान योगस्तु क्षेत्रलोके प्रवक्ष्यते ॥३॥ इति भेदाः स्थानानि च ॥१-२॥
इन प्रत्येक के वापिस पर्याप्त और अपर्याप्त- ये दो होने से कुल चौदह भेद नारकी के होते हैं। ये स्व स्थान, उत्पात और समुद्घात से लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं। इनका अपना वास्तविक स्थान तो अधोलोक का एक भाग है। दूसरे स्थान का योग इनको किस तरह होता है वह इसके बादक्षेत्र लोक में कहा जायेगा । (२-३)
इस तरह इनके भेद और स्थान ये दो द्वार पूर्ण हुए । (१-२) पर्याप्तयः षडप्येषां चतस्त्रो योनि लक्षकाः ।
लक्षाणि कुलकोटीनामुक्तानि पंच विशंतिः ॥४॥
इति द्वा त्रयम् ॥३ से ५ ॥
और इनकी पर्याप्तियां छः होती हैं। इनकी योनि संख्या चार लाख है और कुल संख्या पच्चीस लाख है । (४)
इस तरह तीन द्वार पूर्ण हुए। (३ से ५)
स्युः शीत योनयः के चित्थो ष्णयोनयः 1 जिनैरुक्ता नैरयिकाः संवृता चित्त योनयः ॥ ५ ॥