________________
(५०६) प्राक् प्रतीच्योश्चन्द्र सूर्य द्वीपेषूद्यान देशवत् । क्रीडास्पदेषु ज्योतिष्काः स्वल्पाः प्रायेण सत्तया ॥१३८॥ तेभ्योऽधिका दक्षिणस्यां विमानानां बहुत्वतः । तथा कृष्ण पाक्षिकाणां बाहुल्येनोपपातः ॥१३६॥ उदीच्यां मानससरस्येते क्रीडा परायणाः । आसते नित्यमेवं स्युदक्षिणापेक्षयाधिकाः ॥१४०॥
ज्योतिष्क देव पूर्व और पश्चिम दिशा में सब से कम होते हैं और दक्षिण तथा उत्तर दिशा में अनुक्रम से ज्यादा से ज्यादा होते हैं क्योंकि पूर्व पश्चिम दिशा में इनका क्रीडा स्थान रूप चन्द्र सूर्य द्वीप है वह उद्यान के एक छोटे भाग के समान है, वहां यह स्वाभाविक रूप में थोड़े ही होते हैं। दक्षिण दिशा में इससे अधिक होने का कारण यह है कि वहां बहुत विमान हैं और कृष्ण पाक्षिक देवों की वहां पर उत्पत्ति विशेष है। उत्तर दिशा में इससे और अधिक है। इसका कारण यह कि है वहां जो मानस सरोवर है उसमें वे हमेशा क्रीड़ा करते रहते हैं। (१३७ से १४०)
किंच..... मान सौख्ये सरस्यस्मिन् मत्स्याद्या येम्बुचारिणः। ते समीप स्थित ज्योतिर्विमानादि निरीक्षणात् ॥१४१॥
उत्पन्न जाति स्मरणाः किंचिदाचर्य च व्रतम् । .. विहितानशनाः कृत्वा निदानं सुखलिप्सया ॥१४२॥ . . मृत्वा ज्योतिर्विमानेषूत्पद्यन्तोऽन्तिक वर्त्तिषु ।
' ततः स्युर्दाक्षिणात्येभ्य उत्तराहा इमेऽधिकाः ॥१४३॥ विशेषकं। - उस मान सरोवर में जो मछली आदि जलचर जीव हैं उसके समीपस्थ ज्योतिष्क विमान को देखकर जाति स्मरण होता है। अत: कुछ व्रत अथवा अनशन करके सुखी होने की अपेक्षा से निदान करता है और मृत्यु के बाद उसके समीप में रहे विमान में उत्पन्न होता है। इस कारण से उत्तर दिशा में इनकी संख्या दक्षिण दिशा से अधिक होती है। (१४१-१४३)
स्युः सौधर्मप्रभृतिषु ताविषेषु चतुर्ध्वपि । पूर्वस्यां पश्चिमायां च स्तोका एव सुधा भुजः ॥१४४॥ ततश्चासंख्येय गुणा उत्तरस्यां ततोऽधिकाः । दक्षिणस्यममी प्रोक्ताः श्रूयता तत्र भावना ॥१४५॥