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पिशाचास्तत्र सहजसुरूपाः सौम्य दर्शनाः । रत्नाभरणवद् ग्रीवा हस्ताः षोडशधा मताः ॥३०॥ कुष्माण्डाः पटका जोषा अह्निकाः कालका अपि । चोक्षाचो क्षमहाकालास्तथा वन पिशाचका ॥३१॥ तूष्णीकास्ताल मुखर पिशाचा देह संज्ञकाः । विदेहाश्च महादेहास्तथाधस्तारका इति ॥३२॥
पिशाच का स्वाभाविक सुन्दर रूप होता है, सौम्य दर्शन होते हैं, और उसके गले तथा हाथ में रत्न के आभूषण धारण किए होते हैं। इनके सोलह भेद हैं- कुष्मांड, पटक, जोष अह्निक, काल, चोक्ष, अचोक्ष, महाकाल, वन पिशाच, तूष्णीक, ताल पिशाच, मुखर पिशाच, देह, विदेह, महादेह तथा अधस्तारक । (३० से ३२)
सुरूप प्रतिरूपातिरूपा भूतोत्तमा इति । स्कन्दिकाक्षा महावेगा महास्कन्दिक संज्ञका ॥३३॥
आकाशकाः प्रतिच्छन्ना भूता नवविधा अमी । सौम्याननाः सुरूपाश्च नाना युक्ति विलेपनाः ॥३४॥
भूत नौ जाति के होते हैं- सुरूप, प्रतिरूप, अतिरूप, भूतोत्तम, स्कन्दिकाक्ष, महांवेग, महास्कन्दिक, आकाशक और प्रतिच्छन्न । इनकी सुन्दर आकृति है, उत्तम रूप है और अपने अंग-शरीर पर विविध प्रकार का विलपेन करते हैं। (३२-३४) मानोन्मान प्रमाणोपपन्न देहा विशेषतः ।
रक्तपाणि पादतल तालु जिव्हौष्ट पाणिजाः ॥३५॥ किरीट धारिणो नाना रत्नात्मक विभूषणाः । 'यक्षास्त्रयोदशविधा गम्भीराः प्रियदर्शनाः ॥३६॥
पूर्णमणिश्वेत हरि सुमनो व्यतिपाकतः । भद्राः स्युः सर्वतोभद्राः सुभद्रा अष्टमाः स्मृताः ॥३७॥ यक्षोत्तमा रूपयक्षा धनाहार धनाधिपाः । मनुष्य यक्षा इत्येवं सर्वेप्येते त्रयोदश ॥ ३८ ॥
यक्ष तेरह प्रकार के होते हैं - पूर्णभद्र, मणिभद्र, श्वेतभद्र, हरिभद्र, सुमनभद्र, व्यतिपाक भद्र, सर्वतोभद्र, सुभद्र, यक्षोत्तम, रूप यक्ष, धनाहार, धनाधिप तथा मनुष्य यक्ष । उनका शरीर मानोन्मान के अनुसार होता है। इनके हाथ, पैर, तलिया,