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अट्ठाईस लब्धियां होती हैं । उनमें से मनुष्य जन्म में जिस-जिस को जितनी-जितनी संभव हों उतनी होती हैं। प्रसंग को लेकर आगम में कहे अनुसार उनके नाम कहते हैं। (६५)
कफ विपुष्पलामर्शसा षधिमहर्द्धयः । . संभिन्न श्रोतोलब्धिश्च विपुलर्जुधियावपि ॥६६॥ चारणाशीविषवधिसार्वज्य गणधारिताः । चक्रितार्हत्त्व बलता विष्णुत्वं पूर्वधारिता ॥१७॥ क्षीरमध्वाज्याश्रवाश्च बीज कोष्ठधियौ तथा । पदानुसारिता तेजोलेश्याहारक वैकि ये ॥६॥ शीतलेश्याक्षीण महानसी पुलाक संज्ञिता । इत्यष्टाविंशतिर्भव्य पुंसां सल्लब्धयो मताः ॥६६॥ कलापकम् ।
कफ, थूक, मल, आमर्ष, सर्वोषधि, संभिन्न श्रोत, विपुलमति, ऋजुमति, चारण, आशीविष, अवधि, सर्वज्ञत्व, गणधरत्व, चक्रवर्तीत्व, अर्हतत्व, बलदेवत्व, वासुदेवत्व, पूर्वधारित्व, क्षीर मधुआजय आश्रव, बीजधी, कोष्टधी, पदानुसारिता, तेजोलेश्या, आहारक, वैक्रिय,शीतलेश्या, अक्षीण महानसी, और पुलाक- ये अट्ठाईस उत्तम लब्धियां भव्य पुरुषों को होती हैं। (६६ से ६६)
चक्रचहद्विष्णु बल संभिन्न श्रोतस्त्व पूर्विताः । गण ,त्त्वं चारणत्वं पुलाकाहारके अपि ॥१०॥ विना दशामः स्त्रीष्वन्याः स्युरष्टादश लब्धयः ।
आस्वार्हन्त्यं कदाचिद्यत्तत्त्वाश्चर्य तयोदितम् ॥१०१॥ युग्मं । .. उपरोक्त अट्ठाईस लब्धियों में की संभिन्न श्रोतत्व, चारणत्व, गणधरत्व, चक्रवर्तीत्व, अर्हत्वं, बलदेवत्व, वासुदेवत्व, पूर्वधारित्व, आहारकत्व और पुलाक . लब्धि- इन दस के अलावा शेष अठारह स्त्रियों में भी होती हैं। कभी स्त्री को अर्हत्व प्राप्त होता है, परन्तु वह एक आश्चर्य-अपवादरूप है। (१००-१०१)
दशैताः केवलित्वं च विपुलर्जुधियावपि ।
अभव्य पुंसां नैवैताः संभवन्ति त्रयोदशः ॥१०२॥ .. तथा उपरोक्त दस तथा केवलित्व, विपुलमति और ऋजुमति इस प्रकार तेरह अभव्य पुरुषों को नहीं होती हैं। (१०२)