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________________ (४७६) अट्ठाईस लब्धियां होती हैं । उनमें से मनुष्य जन्म में जिस-जिस को जितनी-जितनी संभव हों उतनी होती हैं। प्रसंग को लेकर आगम में कहे अनुसार उनके नाम कहते हैं। (६५) कफ विपुष्पलामर्शसा षधिमहर्द्धयः । . संभिन्न श्रोतोलब्धिश्च विपुलर्जुधियावपि ॥६६॥ चारणाशीविषवधिसार्वज्य गणधारिताः । चक्रितार्हत्त्व बलता विष्णुत्वं पूर्वधारिता ॥१७॥ क्षीरमध्वाज्याश्रवाश्च बीज कोष्ठधियौ तथा । पदानुसारिता तेजोलेश्याहारक वैकि ये ॥६॥ शीतलेश्याक्षीण महानसी पुलाक संज्ञिता । इत्यष्टाविंशतिर्भव्य पुंसां सल्लब्धयो मताः ॥६६॥ कलापकम् । कफ, थूक, मल, आमर्ष, सर्वोषधि, संभिन्न श्रोत, विपुलमति, ऋजुमति, चारण, आशीविष, अवधि, सर्वज्ञत्व, गणधरत्व, चक्रवर्तीत्व, अर्हतत्व, बलदेवत्व, वासुदेवत्व, पूर्वधारित्व, क्षीर मधुआजय आश्रव, बीजधी, कोष्टधी, पदानुसारिता, तेजोलेश्या, आहारक, वैक्रिय,शीतलेश्या, अक्षीण महानसी, और पुलाक- ये अट्ठाईस उत्तम लब्धियां भव्य पुरुषों को होती हैं। (६६ से ६६) चक्रचहद्विष्णु बल संभिन्न श्रोतस्त्व पूर्विताः । गण ,त्त्वं चारणत्वं पुलाकाहारके अपि ॥१०॥ विना दशामः स्त्रीष्वन्याः स्युरष्टादश लब्धयः । आस्वार्हन्त्यं कदाचिद्यत्तत्त्वाश्चर्य तयोदितम् ॥१०१॥ युग्मं । .. उपरोक्त अट्ठाईस लब्धियों में की संभिन्न श्रोतत्व, चारणत्व, गणधरत्व, चक्रवर्तीत्व, अर्हत्वं, बलदेवत्व, वासुदेवत्व, पूर्वधारित्व, आहारकत्व और पुलाक . लब्धि- इन दस के अलावा शेष अठारह स्त्रियों में भी होती हैं। कभी स्त्री को अर्हत्व प्राप्त होता है, परन्तु वह एक आश्चर्य-अपवादरूप है। (१००-१०१) दशैताः केवलित्वं च विपुलर्जुधियावपि । अभव्य पुंसां नैवैताः संभवन्ति त्रयोदशः ॥१०२॥ .. तथा उपरोक्त दस तथा केवलित्व, विपुलमति और ऋजुमति इस प्रकार तेरह अभव्य पुरुषों को नहीं होती हैं। (१०२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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