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. मूले कन्दे खंघे तया य साले पवाल पत्ते य । सत्त सु वि धणुपुहत्तं अंगुल जो पुप्फफल बीए ॥२६२॥
इति भगवती शतक २१ वृत्तौ तत्सूत्रेऽपि ॥ - श्री भगवती सूत्र में और इसकी इक्कीसवें शतक की वृत्ति में भी कहा है कि-मूल, कंद, स्कंध, छिलके, साल, प्रवाल और पत्र; इन सातों की अवगाहना पृथकत्व धनुष्य की होती है और पुष्प, फल और बीज की पृथकत्व अंगुल की होती है। (२६२).
सालि कल अयसि वंसे इख्खु दम्भे अ अभ्भ तलसी य ।
अढे ते दस वग्गां असीति पुण होंति उद्देसा ॥२६३॥ ... एकैकस्मिन् वर्ग मूलादयो दस दशोद्देशका इत्यर्थः । __ और शाल, कल, अतसी, बांस, इक्षु, दर्भ, अब्ज और तुलसी- इन आठ को दस से गुना करने से अस्सी होता है। ये अस्सी उद्देश होते हैं, इसका अर्थ यह है कि एक-एक वर्ग के अन्दर मूल आदि दस-दस उद्देश होते हैं। (२६३) ..: सर्वेऽमी शालि वजयेष्ठमिहापेक्ष्यावगाहनाम् ।
शाल्यादयोऽमी सर्वेऽब्द पृथकत्व परमायुषः ॥२६४॥ - यह सर्व यहां उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा से शाल समान हैं और इन शाल आदि सर्व का उत्कृष्टतः पृथकत्व वर्षों का आयुष्य है। (२६४)
किं च -- ताले गट्ठि य बहु बीयगा य गुच्छा य गुम्मवल्ली य। .. . छ दस वग्गा एए सर्टि पुण होंति उद्देसा ॥२६५॥
तथा-ताड़, गंडी, बहुबीज, गुच्छ, गुल्म और वल्ली- ये छह दस से वर्गित — करने से अर्थात् इनको दस से गुना करने से साठ उद्देश होते हैं। (२६५)
तालादीनां ज्येष्ठावगाहना मूल कंद किसलेषु ।
चाप पृथकत्वं पत्रेऽप्येवं कुसुमे तु कर पृथकत्वं सा ॥२६६॥
इन ताल आदि के मूल (जड़), कंद और किसलय की अवगहना उत्कृष्टतः पृथकत्व धनुष्य की होती है, पत्तों की अवगाहना भी इसी ही तरह से है परन्तु पुष्प की पृथकत्व कर प्रमाण होती है। (२६६)