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(४६७) १५- वत्सपुर, १६- अच्छापुर, १७- मृतिकावती, १८- अहिच्छत्रा, १६- शुक्तिमति, २० वीतभय, २१- पावापुरी, २२- माषपुर, २३- मथुरा, २४- श्वावस्ती, २५- कोटिवर्ष और श्वेताम्बिका। ये क्रमशः राजधानी हैं । (३१ से ३४)
एष्वेवार्हच्चक्रिराम वासुदेवोद्भवो भवेत् । - आर्यास्तत इमेऽन्ये च तद भावादनार्यकाः ॥३५॥
इन देशों में ही अहँत भगवन्त, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेवों का जन्म होता है इसलिये ये आर्य देश कहलाते हैं। अन्य सब अनार्य देश कहलाते हैं। (३५) - सूत्र कृतांग वृत्तौ च अनार्य लक्षणमेवं उक्तं - "धम्मेत्ति अख्खराइं जे सुवि सुमिणे न सुच्यंति ॥"
__ कृतांगसूत्र की वृत्ति में अनार्य का लक्षण इस प्रकार कहा है- जिसने 'धर्म' शब्द स्वप्न में भी नहीं सुना हो वह देश अनार्य देश है।
विज्ञेयास्तत्र जात्यार्या ये प्रशस्तेभ्य जातयः । उग्रभोगादि कुलजाः कुलार्यास्ते प्रकीर्तिताः ॥३६॥
जो प्रशस्त संभ्य जाति है वह आर्य जाति कहलाती है । उग्रभोग आदि कुल में जन्म लेने वाले कुल आर्य कहलाते हैं। (३६)
· कर्मार्याः वास्त्रिकाः सौत्रिकाद्याः कार्पासिकादयः। .. शिल्पार्यास्तु तुन्नकारास्तन्तुवायादयोऽपि च ॥३७॥ . . और वस्त्र का व्यापार करने वाले, सुत्त (धागे) का व्यापार करने वाले कपास का व्यापार करने वाले आदि कर्म आर्य हैं, दरजी, संगतराश-पत्थर काटने वाला या गढ़ने वाला आदि शिल्प आर्य कहलाता है। (३७) - भाषाएं येऽर्धमागध्या भाषान्ते भाषायात्र ते ।
ज्ञान दर्शन चारित्रार्यास्तु ज्ञानादिभिर्युताः ॥३८॥ ___जो अर्धमागधी आदि श्रेष्ठ भाषा बोलता है वह भाषा आर्य कहलाता है
और जो ज्ञानयुक्त हो वह ज्ञान आर्य है, श्रद्धा-दर्शन वाला हो वह दर्शन आर्य है . और चारित्रवान् हो वह चारित्र आर्य कहलाता है। (३८)
अत्र भूयान् विस्तरोऽस्ति स तु प्रज्ञापनादितः । विज्ञेयो विबुधैर्नेह प्रोच्यते विस्तृतेर्भयात् ॥३६॥
इतिः भेदाः ॥