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ये तीन द्वार हैं । (४ से ६) पल्योपमानां त्रितयमुत्कृष्टैषां भवस्थितिः । सा युग्मिनां परेषां तु पूर्वकोटिः प्रकीर्तिता ॥४४॥
अब इसकी भवस्थिति के विषय में कहते हैं- गर्भज मनुष्यों की भवस्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है, परन्तु यह स्थिति केवल युगलियों की है अन्य मनुष्यों की करोड़पूर्व की है। (४४)
जघन्या नर गर्भस्य स्थितिरान्तर्मुहूर्तिकी । उत्कृष्टा द्वादशाब्दानि विज्ञेया मध्यमाऽपरा ॥४५॥
मनुष्य के गर्भ की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उसकी उत्कृष्ट स्थिति बारह वर्ष की है। इसके अलावा बीच की स्थिति मध्यम समझना। (४५)
पित्तादि दूषिणः पापी कार्मणादि वशोऽथवा । द्वादशाब्दानि गर्भान्तस्तिष्ठेत् सिद्धनृपादिवत् ॥४६॥
पित्त आदि.दोष वाला पापी अथवा कामण टुमण आदि के वश कारण प्राणी सिद्धराज के समान बारह वर्ष तक भी गर्भ में रहता है। (४६)
चतुर्विंशतिवर्षा च गर्भ कायस्थितिर्नृणाम् । .. उत्कृष्टस्थिति गर्भस्य मृत्योत्पत्रस्य तत्र सा ॥४७॥
. मनुष्य के गर्भ की कायस्थिति चौबीस वर्ष की भी होती है, परन्तु वह मृत्यु प्राप्तकर पुनः उत्पन्न हुआ उत्कृष्ट स्थिति वाला गर्भ होता है। (४७) ... स्थित्वा द्वादश वर्षाणि गर्भ कश्चिन्महाघवान् ।
विपद्योस्। तत्रैव तावत्तिष्ठ त्यसौ यतः ॥४८॥ . .. इति भवस्थितिः ॥७॥
इत्यर्थतो भगवती शतक २ पंचमोद्देशके ॥
क्योंकि कोई महापापी जीव बारह वर्ष गर्भ में रहकर मृत्यु प्राप्त कर पुनः वहीं उत्पन्न होता है, वह उतना समय वहीं रहता है। (४८)
यह भव स्थिति द्वार है । (७) ... यही भावार्थ श्री भगवती सूत्र के दूसरे शतक के पांचवें उद्देश में कहा है।