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(४२८)
एवमग्रेऽपि....... संख्येयदिन रूपा च पर्याप्ता त्रीन्द्रियांगिनाम् ।
पर्याप्त चतुरक्षाणां संख्येय मास रूपिका ॥२५॥
इति कायस्थितिः ॥८॥ अब कायस्थिति का स्वरूप कहते हैं- तीन प्रकार के विकलेन्द्रिय जीवों को ओघ से काय स्थिति प्रत्येक की तथा तीनों प्रकार की मिलाकर संख्यात सहस्रों वर्षों की है। परन्तु इसमें पर्याप्त द्वीन्द्रिय की कायस्थिति संख्यात वर्षों की ही कही है क्योंकि द्वीन्द्रिय की उत्कृष्ट भवस्थिति बारह वर्ष की है और ऐसी एक के बाद एक लगातार कई जन्म करने से काय स्थिति होती है। इसी प्रकार पर्याप्त त्रीन्द्रिय जीवों की संख्यात दिनों की होती है और पर्याप्त चतुरिन्द्रयों की संख्यात मास की काय- स्थिति रहती है। (२२ से २५)
यह काय स्थिति द्वार है। (८) कार्मणं तैजसं चौदारिक मेतत्तनुत्रयम् ।
इति देहाः॥६॥ केवल हुंड संस्थानमेतेषां परिकीर्तितम् ॥२६॥
इति संस्थानम् ॥१०॥ इनके शरीर तीन प्रकार के हैं- कार्मण, तैजस और औदारिक। यह देहमान द्वार है । (६) संस्थान केवल हुडंक संस्थान ही कहा है । (२६). यह संस्थान द्वार है (१०) योजनानि द्वादशैषां त्रिगव्यूत्येक योजनम् । .. क्रमाज्ज्येष्ठा तनुर्लव्यंगुलासंख्यवोन्मिता ॥२७॥
देहमान उत्कृष्ट द्वीन्द्रिय का बारह योजन है, त्रीन्द्रिय का तीन कोस और चतुरिन्द्रय का एक योजन होता है । जघन्यतः शरीरमान तीनों का अंगुल के असंख्यतवें भाग जितना होता है। (२७)
___ आहुश्च- "बारस जोअण संखो तिकोस गुम्मी य जो अणं भमरो । इति॥" इति अंगमानम् ॥११॥