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एषां गतिर्विकलवत्तथैवागतिरप्यहो । किन्त्वमी वह्नि वायुभ्यां नागच्छन्ति नरत्वतः ॥११॥ अष्ट चत्वारिंशदेषां नाडयो जन्मात्ययान्तरम् । एक सामायिकी संख्या विज्ञेया विकलाक्षवत् ॥२॥
. इति गत्यागती ॥१३-१४॥ इनकी गति और आगति दोनों विकलेन्द्रिय के अनुसार हैं परन्तु ये अग्निकाय, वायुकाय और मनुष्य में से नहीं आते। इनका जन्म और मृत्यु के बीच का अन्तर अड़तालिस नाडिया का होता है। यह उपघात विरह काल है अर्थात् कुछ काल तक उस जाति में कोई भी जन्म नहीं लेता । वह काल ४८ नाड़ी का अर्थात् घड़ी- २४ मुहूर्त का कहा है । इनकी एक सामयिकी संख्या विकलेन्द्रिय प्रमाण समझना। (११-१२) ये दो द्वार हैं । (१३-१४)
अनन्तराप्तिः समये सिद्धयतां गणनापि च । पृथग् न लक्ष्यते ह्येषां सा विज्ञेया बहुश्रुतात् ॥१३॥
... इति द्वारद्वयम् ॥१५-१६॥ .: इनकी अनन्तराप्ति और समयसिद्धि की गणना पृथक् नहीं दिखती, अतः ये बहुश्रुत ज्ञानी के पास से जान लेना। (१३)
ये दो द्वार हैं । (१५-१६) .द्वाराणि लेश्यादीन्यष्टावेतेषां विकलाक्षवत् ।
उक्तानि किन्त्विन्द्रियाणि पंचैतेषा श्रुतानुगैः ॥१४॥ .. . इति द्वाराष्टकम् ।।१७-२४॥ - इनकी लेश्या आदि आठ द्वार अर्थात् सत्तरह से लेकर चौबीस तक के द्वार विकलेन्द्रिय के अनुसार जानना । परन्तु ज्ञानियों ने इनको इन्द्रियां पांच कही हैं। (१४)
ये आठ द्वार हैं । (१७ से २४)
मिथ्यादशोऽमी एतेषामाद्याज्ञान द्वयं तथा । ... आद्ये द्वे दर्शने तस्मादुपयोग चतुष्टयम् ॥१५॥
इति द्वारचतुष्टयम् ॥२५-२८॥