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प्रकार के महोरग हैं, कई तो अंगुल समान हैं, कई पृथक्त्व अंगुल समान होते हैं और कई बढ़ते-बढ़ते एक हजार योजन प्रमाण तक होते हैं। (१४२ से १४५)
गर्भजानां खचराणां धनुः पृथकत्वमेव तत् ।
अंगुलासंख्यांशमानं सर्वेषा तजधन्यतः ॥१४६॥
गर्भज खेचर का उत्कृष्ट शरीरमान पृथकत्व धनुष्य का है और सर्व का जघन्य शरीर एक अंगुल के असंख्यवें अंश जितना होता है । (१४६) ...
वैक्रि यं योजन शत पृथकत्व प्रमितं गुरु । . आरंभेऽङ्गल संख्यांशमानं तत्स्याजघन्यतः ॥१४७॥ . .
इति देहमानम् ॥११॥ पंचेन्द्रिय तिर्यंच का वैक्रिय शरीर उत्कृष्टतः सौ पृथकत्व योजनों का होता. है जो कि आरम्भ में तो यह जघन्यतः एक अंगुल के असंख्यवें भाग जितना होता है। (१४७)
इस तरह यह देहमान है। (११)
आद्यास्त्रयः समूद्घाताः संमूर्छिम शरीरिणाम् । ' गर्भजानां तु पंचैते कैवल्याहारको बिना ॥१४८॥
इति समुद्घाताः ॥१२॥.... अब समुद्घात के विषय में कहते हैं- संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच को पहले तीन समुद्घात होते हैं। गर्भज को केवली तथा आहारक के सिवाय पांच समुद्घात होते हैं। (१४८)
यह समुद्घात है। (१२) यान्ति संमूर्छिमा नूनं सर्वास्वपि गतिष्वमी । तत्रापि नरके यान्तो यान्त्याद्यनरकावधि ॥१४६॥
अब उनकी गति के विषय में कहते हैं- संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच सर्व गतियों में जाते हैं। इसमें भी यदि नरक में जायें तो पहली नरक तक जा सकते हैं । (१४६)
एकेन्द्रियेषु सर्वेषु तथैव विकलेष्वपि । संख्यासंख्यायुर्युतेषु तिर्यक्षु मनुजेषु च ॥१५०॥ ये सब एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में भी जाते हैं, तथा उसी प्रकार ही