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इति त्रीन्द्रिय भेदाः ॥
अनेक जाति की चीटियां, धीमेल, उध्घेय, लीख, मकोड़ा, जूं, गद्धइयां, खटमल, गोकलगाय, इयल, सावा, गुल्मी, गोबर का कीड़ा, चोर कीड़ा, अनाज का कीड़ा, पांचों रंग के कंथुआ, तृण-काष्ठ तथा फल का आहार करने वाले तथा पत्तों आदि का आहार करने वाले इत्यादि त्रीन्द्रिय जीव होते हैं । ये भी पर्याप्त और अपर्याप्त दो प्रकार के होते हैं । (५ से ७)
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त्रीन्द्रिय के भेद हैं।.
वृश्चिका ऊर्णनाभाश्च भ्रमर्यो भ्रमरा अपि । कंसार्यो मसकास्तिड्डा मक्षिका मधुमक्षिकाः ॥८॥ पतंगा झिल्लिका दंशाः खद्योता ढिंकणा अपि । रक्तपीत हरित्कृष्णचित्र पक्षाश्च कीटकाः ॥६॥ नन्द्यावर्ताश्च कपिलडोलाद्याश्चतुरिन्द्रियाः । भवन्ति तेऽपि द्विविधाः पर्याप्तान्यतयाखिलाः ॥१०॥
इति चतुरिन्द्रिय भेदाः ॥
बिच्छू, मकड़ा, भौरे, भ्रमर, कंसारी, मच्छर, टिड्डी, मक्खी, मधुमक्खी, पंतगा, जील्लका, डांस, जुगनू, ढीकणा, लाल, पीली, हरी, काली तथा चित्तकवरे चित्र वाले कोड़े, नंद्यावर्त, खड भाकडी इत्यादि चतुरिन्द्रिय जीव होते हैं । इनके भी पर्याप्त और अपर्याप्त दो भेद हैं । ( ८ से १० )
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ये चतुन्द्रिय के भेद हैं।.
अथ स्थानम् -
ऊर्ध्वाधोलोकयोरेकदेश भागे भवन्ति ते । तिर्यग्लोके नदी कूपतटाकदीर्घिकादिषु ॥११॥ द्वीपाम्भोधिषु सर्वेषु तथा नीराश्रयेषु च । षोढापि विकलाक्षाणां स्थानान्युक्तानि तात्विकैः ॥ १२ ॥
उपपातात्समुद्घांतान्निज स्थानादपि स्फुटम् । असंख्येयतमे भागे ते लोकस्य प्रकीर्तिताः ॥१३॥
इति स्थानम् ॥२॥