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इत्थं नारक लेश्यानां स्थितिः प्रकटिता मया ।
अथ निर्जर लेश्यानां स्थितिं वक्ष्ये यथाश्रुतम् ॥३४१॥
इस प्रकार नारक लेश्या की स्थिति मैंने कही है । वही स्थिति देवों की है। वह आगम शास्त्र में कहा है । अब उसके विषय में कहता हूँ । (३४१)
दश वर्ष सहस्राणि कृष्णायाः स्याल्लघुः स्थितिः। एतस्याः पुनरुत्कृष्टा पल्यासंख्यांश संमिता ॥३४२॥
कृष्ण लेश्या की स्थिति कम से कम दस हजार वर्ष की होती है और अधिक से अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है । (३४२)
इयमेवैक समयाधिका नीलास्थितिलघुः । पल्यासंख्येय भागश्च नीलोत्कृष्ट स्थितिर्भवेत ॥३४३॥ ·
नील लेश्या की स्थिति कम से कम पूर्व कहे अनुसार से एक समय अधिक होती है और उत्कृष्ट रूप में पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी होती है । (३४३)
पल्यासंख्येय भागोऽयं पूर्वोक्तासंख्य भागतः । वृहत्तरो भवेदेवं ज्ञेयमग्रेऽपि धीधनैः ॥३४४॥
पल्योपम का जो यह असंख्यातवां भाग कहा है वह पूर्वोक्त असंख्यातवें भाग से बड़ा होता है। इसी ही तरह आगे भी जानना । (३४४)
या नीलायाः स्थिति]ष्टा समयाभ्यधिका च सा । कापोत्या लघुरस्याः स्यात्पल्यासंख्यलवो गुरुः ॥३४५॥
नील लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति होती है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समान होती है । (३४५)
लेश्यानां तिसृणा मासां स्थितिर्याऽदर्शि सा भवेत्। . भवनेश व्यन्तरेषु नान्येषु तदसम्भवात् ॥३४६॥
तीन.लेश्याओं की यह स्थिति कही है, यह भवनपति और व्यन्तर के सम्बन्ध में समझना। अन्य देवों में ये लेश्यायें संभव ही नहीं होतीं, फिर स्थिति ही किसकी है । (३४६)
एवं वक्ष्यमाण तेजो लेश्याया अप्ययौ स्थितिः । भवनव्यन्तर ज्योतिराद्य कल्पद्वयावधि ॥३४७॥