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रूप है। अचक्षु दर्शन अर्थात् चक्षु बिना श्रोत्र आदि इन्द्रियों से सामान्य अर्थ ग्रहण होता हैं।'
येनावधेरूपयोग सामान्यमवबुध्यते । अवधि ज्ञानिनामेव तत्स्यादवधि दर्शनम् ॥१०५६।। यथैवमवधिज्ञाने भवत्यवधि दर्शनम् । .
एवं विभंगेऽप्यवधि दर्शनं कथितं श्रुते ॥१०५७॥
जिसके द्वारा अवधि ज्ञान के उपयोग में सामान्य बोध-ज्ञान होता है उसका नाम अवधि दर्शन है, जो केवल अवधि ज्ञानी को ही होता है । जिस तरह अवधि ज्ञान में अवधि दर्शन होता है वैसे ही विभंग ज्ञान में भी अवधि दर्शन होता है। इस तरह शास्त्र में कहा है । (१०५६-१०५७) अयं भाव ...... सम्यग् दृगवधिज्ञाने सामान्यावगमात्मकम्। .
यर्थतत्स्यात्तथामिथ्यादृग्विभंगेऽपितद्भवेत॥१०५८॥ नामा च कथितं प्राज्ञैस्तदप्यवधि दर्शनम् ।
अनाकारत्वा विशेषाद्विभंग दर्शनं न तत् ॥१०५६॥ ।
इसका भावार्थ इस प्रकार है कि- सम्यक् दृष्टि के अवधि ज्ञान में जैसे यह सामान्य बोध रूप अवधि दर्शन होता है, वैसे ही मिथ्या दृष्टि के विभंग ज्ञान में भी वह होता है और उसे भी ज्ञानियों ने अवधि दर्शन ही कहा है। क्योंकि अनाकार रूप दोनों में समान है और इससे उसको विभंग दर्शन नाम अलग नहीं दिया है। (१०५८-१०५६)
अयं सूत्राभिप्रायः॥
आहुः कार्मग्रन्थिकास्तु यद्यपि स्तः पृथक्-पृथक् । साकारेतर भेदेन विभंगावधि दर्शने ॥१०६०॥. तथापि मिथ्या रूपत्वान सम्यग्वस्तु निश्चयः । .. विभंगानाप्यनाकारत्वेनास्यावधि दर्शनात् ॥१०६१॥ .. ततोऽनेन दर्शनेन पृथग्विवक्षितेन किम् । तत्कार्म ग्रन्थिकै र्नास्य पृथगेतद्विवक्षितम् ॥१०६२।।
इन सूत्रों का अभिप्राय है- कर्म ग्रन्थ में तो इस तरह कहा है कि यद्यपि साकार और इससे इतर-निराकार भेदों को लेकर विभंग दर्शन और अवधि दर्शन