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अनादि सूक्ष्म निगोद में से जो एक बार भी निकलता है और पृथ्वीकाय आदि व्यवहार को प्राप्त करता है, वह व्यवहारी कहलाता है। वे कभी वापिस भी उस स्थान पर पुनः जाते हैं फिर भी उन्होंने व्यवहार देखा हुआ होने से व्यवहारी ही कहलाते हैं । (६४-६५)
कदापि ये न निर्याता बहिः सूक्ष्म निगोदतः । अव्यावहारिकास्ते स्युर्दरीजात मृता इव ॥६६॥
जो कभी भी सूक्ष्म निगोद में से निकले ही नहीं हैं, वे गुफा में जन्म लेकर गुफा में ही मृत्यु प्राप्त करने वाले के समान अव्यवहारी हैं। (६६)
तदुक्तं विशेषणवृत्याम्अत्थि अणंता जीवा जेहिं न पतो तसाइ परिणामो। । ते वि अणंताणता निगोअवासं अणुहवन्ति ॥६७॥
इति सूक्ष्माणां भेदाः ॥ विशेषण वृत्ति में कहा है कि- ऐसे अनन्त जीव हैं जिन्होंने परिणाम से भी त्रसत्व नहीं प्राप्त किया। वे अनन्त काल से निगोद में बुरी हालत में पड़े हैं। (६७)
इस तरह सूक्ष्म जीवों के भेद समझना ॥१॥ एभिर्लोकोऽखिलो व्याप्तः कजलेनेव कूपिका । क्वापि प्रदेशो नास्त्येभिर्विहीनः पुदगलैरिवं ॥१८॥
इति स्थानम् ॥२॥ काजल से भरी डब्बी के समान सारा लोक इन जीवों से भरा हुआ है। जैसे पुद्गल रहित कोई प्रदेश नहीं है वैसे ही इन जीवों के बिना का कोई स्थान नहीं है । (६८)
यह सूक्ष्म जीवों का स्थान है। (२)
आद्याश्चतस्त्रस्तिस्वः स्युरेषां पर्याप्तयः क्रमात् । ... पर्याप्तान्येषामथायुः श्वासः कायबलं तथा ॥६६॥ त्वगिन्द्रियं चेत्त्यमीषां प्राणाश्चत्वार ईरिताः । संख्या योनि कुलानां तु प्रथगेषां न लक्ष्यते ॥७०॥ युग्म्। ततश्च.....संख्या योनि कुलानां या बादराणां प्रवक्ष्यते ।
एतेषामपि सैवामी सर्वे संवृत योनयः ॥७॥ इति पर्याप्त्यादिद्वार चतुष्टयम् ॥३-६॥