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संवर्त वायु, मंडलिक वायु, धन वायु तथा तनु वायु इत्यादि वायु के भेद हैं। (२१-२२)
लहर्य इव पाथोथैर्वातस्योत्कलिकास्तु याः । रेणुकासु स्फुट व्यंग्यास्तद्वानुत्कालिकानिलः ॥२३॥ गुंजन् सशब्दं यो वाति स गुंजावात उच्यते । ' झंझानिलो वृष्टियुक्तः स्याद्वा योऽत्यन्तनिष्ठुरः ॥२४॥ आवर्तकस्तृणादीनां वायुः संवर्तकाभिधः । ... मंडलाकृतिरामूलात् मंडलीवात उच्यते ॥२५॥ ..
उद्घाम अर्थात् अनवस्थित रूप में वायु चलता है, समुद्र की तरंगों के समान वायु की तरंगें होती हैं, वह रेती में स्पष्ट दिखती हैं, वह तरंग वाली वायु हो, वह उत्कलिक वायु है। सशब्द अर्थात् आवाज करते गूंजता हो वह गुंजावात कहलाता है। तथा मेघ की वृष्टि सहित वायु हो अथवा अत्यन्त कठोर हो वह झंझा वायु कहलाता है। तृण आदि को घुमाकर उखाड़ने वाला जो वायु है वह संवर्तक. वायु है। मूल में से ही गोलाकार फिरती वायु हो, वह मंडलिक वायु है। (२३ से २५)
घनो घन परीणामो धराद्याधार ईरितः । विरलः परिणामेन तनुवातस्ततोऽप्यधः ॥२६॥
घन परिणामी और पृथ्वी आदि का आधारभूत वह घन वायु है, और घन वायु से भी नीचे रहने वाला विरल परिणामी वायु तनु वायु है। (२६)
मन्दं मन्दं च यो वाति शीतः स्पर्श सुखावहः । स उच्यते शुद्धवात इत्याद्याः स्युर्मरुद्भिदः ॥२७॥ .
इति वायु काय भेदाः ॥ तथा जो मंद-मंद वायु चलती हो, शीतल हो और सुखकारी हो, वह शुद्ध वायु है । इत्यादि वायु जानना। (२७)
इस प्रकार वायुकाय के भेद होते हैं। क्रमप्राप्ता निरूप्यन्ते भेदा अथ वनस्पतेः । साधारणस्य प्रत्येकवपुषश्च यथा क्रमम् ॥२८॥
अब क्रमानुसार प्रत्येक और साधारण वनस्पति के भेद का निरूपण करने में आता है। (२८)