________________
(३७८)
मल्लिका कुन्द कोरिंट यूथिका नवमल्लिका: ।
मुद्गरः कणवीरश्च जात्याद्या गुल्म जातयः ॥१२०॥
मल्लिका, कुंड, कोरिंट, यूथिका, नवमल्लिका, मोगरा, कणेर, जई इत्यादि गुल्म की जातियां होती हैं । (१२०)
अशोक चम्पक लता नागपद्मलता अपि ।
अतिमुक्तक वासन्ती प्रमुखाः स्युर्लता इमाः ॥ १२१ ॥
अशोकलता, चंपकलता, नागलता, पद्मलता, अतिमुक्तलता, वासन्ती इत्यादि लताएं होती हैं। (१२१)
एकैव शाखा यत्कन्धेमहत्यूर्ध्वं विनिर्गता । नैवान्यास्तादृशंः स स्याल्लताख्यश्चम्पकादिकः ॥१२२॥
जिसके स्कंध में एक ही बडी शाखा ऊंची निकली हो और इसके समान दूसरी एक भी शाखा न हो वह लता कहलाती है। (१२२)
कुष्मांडी त्रपुषी तुम्बी कालिंगी चिर्मटी तथा ।
गोस्तनी कारवेल्ली च वल्ल्य कर्कोटिकादिकाः ॥ १२३॥
कुम्हड़ा (कद्दू), त्रपुषी ( तरबूज ), तुम्बडा, कालिंगडी, आरिया - फूट, द्राक्ष, कारेली तथा खरखोडी आदि वल्ली की जाति कहलाती हैं। (१२३)
इक्षुः वंश: वीरणानि द्रक्कुडः शर इत्यपि ।
वेत्र: नडश्च काशश्च पर्वगा एवमादयः ॥ १२४॥
इक्षु, बांस, वीरण, द्रक्कुड, शर, नेतर बेंत, नड, काश आदि पर्वग अर्थात् संधिस्थान (जोड़) वाली वनस्पति होती हैं। (१२४)
दूर्वा दर्भार्जुनैरंडाः कुरुविन्दक रोहिषाः । सुंकल्याख्यं क्षीर बिसमित्याद्याः तृण जातयः ॥ १२५ ॥
दूर्वा, दर्भ, अर्जुन, एरंड, कुरुविंदक, रोहिष, सुंकली, क्षीर, बिस आदि जाति के तृण (घास) कहलाते हैं। (१२५)
पूग खर्जूर सरला नालिकेर्यश्च केतकाः ।
तमालतालकन्दल्यः इत्याद्याः वलयाभिघाः ॥ १२६ ॥
w
सुपारी, खजूर, सरल, नारियल, केतक, तमाल, ताल, केला आदि वलय कहलाते हैं। (१२६)