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(३८६) (३८११२७२६७०)- इतने वनस्पति के भेद कहे हैं। (१६६) पाठान्तरे च - रामोवसवश्चन्द्रः सूर्यो भूमिस्तथैव च ।
मुनिः शून्यं समादिष्ट भार संख्या निगद्यते ॥१६७॥ जबकि पाठान्तर के अनुसार तीन करोड़ इक्यासी लाख बारह हजार एक सौ सत्तर (३८११२१७०)- इतने वनस्पति के भेद कहे हैं। (१६७) ...
एकै कजातेरेकैक पत्र प्रचयतो भवेत् ।....... प्रोक्त संख्यैर्मणै रस्ते त्वष्टादश भूरुहाम् ॥१६॥
प्रत्येक जाति के एक-एक पत्र को एकत्रित करते हुए जो संख्या कही है, उतने मन होती है तब एक भार होता है । ऐसे अठारह भार वनस्पति हैं। (१६८) तथा..... चत्वारोऽपुष्पका भारा अष्टौ च फल पुष्पिताः। ..
स्युर्वल्लीनां च षड्भाराः शेष नागेन् भाषितम् ॥१६६॥ इत्यादि उच्यते ॥ इति बादराणां भेदः ॥१॥ उसमें पुष्प रहित का चार भार होता है, फूल- पुष्प वाली का आठ भार होता है तथा वल्ली का छह भार होता है । इस तरह शेषनाग का अर्थात् निश्चय निर्णय पूर्वक वचन है। (१६६)
__ इस तरह लोकोक्ति है। इस प्रकार बादर के भेद में विवेचन सम्पूर्ण हुआ। यह प्रथम द्वार है।
प्रसिद्धाः सप्तयाः पृथ्व्यः वसुमत्यष्टमी पुनः । ईषत्प्राग्भारभिधा स्यात्तासु स्व स्थानतोऽष्टसु ॥१७॥ अधोलोके च पाताल कलशा वलिभित्तिषु । भवनेष्वसुरादीनां नारका वसथेसु च ॥१७१।। ऊर्ध्वलोके विमानेषु विमानप्रस्तटेषु च ।। तिर्यग्लोके च कूटाद्रि प्राग्भार विजयादिषु ॥१७२॥ .. वक्षस्कारवर्ष शैल जगती वेदिकादिषु । द्वार द्वीप समुद्रेषु पृथिवी कायि कोद्भवः ॥१७३॥ कलापकम्॥
- इति पृथ्वीकाय स्थानानि ॥ .
अब बादर पृथ्वीकायिक जीवों के स्थान के विषय में कहते हैं- सात पृथ्वी प्रसिद्ध हैं और आठवीं इषत् प्राग्भार नाम की है। इन आठ पृथ्वी में