________________
(३८२)
. .
किं च- पद्मोत्पल नलिनानां सौगन्धिक सुभग कोकनदका नाम ।
अरविन्दानां च तथा शतपत्र सहस्रपत्राणाम् ॥१४४॥ वृन्तं बाह्य दलानि च सकेसराणि स्युरेक जीवस्य। पृथगेकैक जीवान्यन्तर्दल केसराणि बीजानि ॥१४५॥युग्मं।
(तथा पद्म उत्पल, नलिन, सौगंधिक, सुभग, कोकनद, अरविंद) शतपत्र तथा सहस्रपत्र- ये पुष्पों के वृंत तथा सकेसर बाह्य दल एक जीव का है, और अन्तर्दल केसरा तथा बीज प्रत्येक अलग-अलग एक जीव वाला है। (१४४-१४५)
पर्वगाणां तृणानां च अयं विशेषः द्रकुडीक्षु नडादीनां सर्व वंशभिदां तथा । . भवन्त्येकस्य जीवस्य पर्वाक्षिपरिमोटकाः ॥१४६॥ तत्राक्षि प्रोच्यते ग्रन्थिः प्रतीतं पर्व सर्वतः । . चक्राकारं पर्वपरिवेष्ठ मं परिमोटकः ॥१४७॥ . पत्राणि प्रत्येक मेषामेक जीवाश्रितानि वै । पुष्पाण्यनेक जीवानि प्रोक्तानि परमर्षिभिः ॥१४८॥
पर्वग और तृण के सम्बन्ध में यह विशेष है- द्रक्कडी, इक्षु और नड आदि के तथा सर्व जाति के बांसना, पर्व अक्षि और परिमोटक एक जीव का होता है। यहां अक्षि अर्थात् गांठ समझना, पर्व अर्थात् सन्धि स्थान और परिमोट अर्थात् पर्व के ऊपर चक्राकार वेष्टन। इस प्रकार पत्ते-पत्ते में एक जीव होता है, और पुष्प-पुष्प में अनेक जीव होते हैं। (१४६-१४८)
फलेषु च एषामयं विशेषः
पुष्पफलं कालिंगं तुम्बं चिर्मटमथ त्रपुषसंज्ञम् । . घोषातकं पटोलं तिन्दूकं चैव तेन्दूषम् ॥१४६॥ एतेषां च ..... वृन्तगर्भ कटाहा नामेको जीवः समर्थकः ।
पृथग्जीवानि पत्राणि बीजानि केसराण्यपि ॥१५०॥ इसके फलों में इस प्रकार विशेषता है: पुष्प, कालिंग, तुम्ब, चिमडा, त्रपुष, घोषातक, पटोल, तिंदुक और तंदुष- इनके वृंत, गर्भ और कटाह का एक जीव होता है और पत्र, बीज तथा केसर का अलग-अलग जीव होता है। (१४६-१५०)