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और जो तीसरा प्रकारे का है उसके लिए आगे दो गाथा में जैसा कहा है उसके अनुसार है। (१३७-१३८)
तच्चेदम् - ताले तमाले तक्कलि तेतलिसाले य साल कल्लाणे।
- सरले जीवइ केयइ कंदलि तह चम्मख्खे य ॥१३६॥ चुअरूखखहिंगुरुख्खे लवंगुरुखखे य होइ बोधव्वे। पूय फली खजूरी बोधव्वा नालिएरी य ॥१४०॥
वह इस तरह से- ताल, तमाल, तक्कलि, तेतलि साल, साल कल्याण, सरल, जीवंती, केतकी, कं दली, चर्मवृक्ष, हिगुंवृक्ष, लवंग वृक्ष, सुपारी वृक्ष, खजूर और नारियल। (१३६-१४०)
तथा प्रज्ञापना वृत्तौ अपि- "ताल सरल नालिकेरीग्रहणं उपलक्षणम्। तेन अन्येषां अपि यथागमं एक जीवाधिष्टि तत्वंस्कन्धस्य प्रतिपत्तव्यम्"।इति॥
तथा प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में भी कहा है कि- 'ताड़, सरल और नारियल का जो ग्रहण किया है वह उपलक्षण के रूप में है। इसलिए अन्य वृक्षों के स्कंध भी आगम में कहे अनुसार एक जीव से अधिष्ठित हैं। इस तरह समझना है।'
'शृंगारकस्य गुच्छः स्यादनेक जीवकः किल । - पत्राण्येकैक जीवानि द्वौ द्वौ जीवौ फलं प्रति ॥१४१॥ .
सिंघाड़ा के गुच्छ में अनेक जीव होते हैं, इसके प्रत्येक पत्ते में एक जीव है और इसके प्रत्येक फल में दो-दो जीव हैं। (१४१) पुष्पाणां तु अयं विशेषः
जलस्थलोद्भूततया द्विधा सुमनसः स्मृताः । नाल बद्धा वृन्तबद्धाः प्रत्येकं द्विविधास्तु ताः ॥१४२॥ याः काश्चिन्नालिकाबद्धास्ताः स्युः संख्येयजीवकाः। अनन्त जीवका ज्ञेयाः स्तुही प्रभृतिजाः पुनः ॥१४३॥
और पुष्पों के सम्बन्ध में इस तरह विशेष है- पुष्प दो प्रकार के कहे हैं, १- जलरूह और २- स्थलरूह। उसमें फिर प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं- . नालबद्ध और वृंतबद्ध। इसमें जो कई नालबद्ध हैं वे संख्यात जीव वाले होते हैं और दूसरे स्तुही-थोर आदि वृतबद्ध हैं वे अनन्त जीव वाले हैं। (१४२-१४३)