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आर्य कदमनके मरूबक मन्डुकी सर्षपाभिधौ शाकौ ।
अपि तन्दुलीय वास्तुकमित्याद्या हरितका ज्ञेयाः ॥१२७॥
आर्यक, दमनक, मरूबक, मंडुकी, सर्षप, तांदलजा तथा वास्तुक इत्यादि हरितक कहलाते हैं। (१२७)
औषध्यः फलपाकान्ताः ताः स्फूटा धान्यजातयः । चतुर्विंशतिरुक्तानि तानि प्राधान्यतः किल ॥१२८॥
पक कर तैयार हुए सभी प्रकार के अनाज औषाधि रूप हैं । इनकी मुख्य चौबीस जाति हैं। (१२८)
तथाहि ..... धन्नाइं चउव्वीसं जव गोहुम सालि वीहि सट्टिका ।
कोद्दव अणुया कंगू रायल तिल मुग्ग मासा य ॥१२६॥
अयसि हरिमंथ तिउडग निप्फाव सिलं रायमासा य । उ मसूर तुवरी कुलत्थ तह धन्नय कलाया ॥१३०॥ इति ।
वह चौबीस प्रकार का अनाज इस प्रकार का है- जौ - जव, गेहूं, शाल, चावल, साढी चावल, कोद्रव, अणुक, कांग, खिरनी, तिल, मूंग, उड़द, अलसी, हरिमंथ, तिऊडग, निष्फाव, सिल, राजमा, उख्खू, मसूर, अरहर, कुलथी, धनिया और चने। (१२६-१३०)
रूहन्ति जलमध्ये ये ते स्युर्जलरूहा इमे ।
कदम्ब शैवल कशेरूकाः पद्मभिदो मतांः ॥१३१॥
'जो जल के अन्दर उत्पन्न होता है वह जलरूह होता है। जैसे कदम्ब, शैवल, केशरुक तथा कमल की जाति होती हैं । (१३१)
कुंहणा अपि बोधव्या नामान्तर तिरोहिताः । स्फूटा देश विशेषेषु चतुर्थोपांग दर्शिताः ॥१३२॥
• कुहण भी जलरूह की जाति विशेष है । किसी देश में प्रसिद्ध होगी। इसके विषय में स्पष्ट रूप में चौथे उपांग में विवेचन मिलता है। (१३२)
तद्यथा- " से किति कुहणा । कुहणा अणेग विहा पण्णत्ता । तं जहां । आएकाए कुहणे कुण्णके दव्वहलिया सप्पाए सज्जाए सत्ताए वंशीण हिया. कुरूए । जेया वण्णे तहप्पगारा सेत्तं कुहणा । इत्यादि ॥"