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एक जीव कृत ही हैं, अंकुर आदि मूल के जीव से अवश्य उत्पन्न होता है- ऐसा नहीं है। (७२-७३)
ततश्च उभयमपि अविरुद्धम् (१) जोविय मूले जीवो सोवियं पत्ते पढम- याए त्ति, (२) सव्वो वि किसलयो खलु उग्गममाणो अणंतओ भणिओ इति॥ . इसलिए १- मूल का ही जीव प्रथम पत्र का जीव है और २- उत्पन्न होते सर्व किसलय-अंकुर को अनन्तकायिक कहा है। यह मत अविरोधी है।
एतच्चार्थतः प्रज्ञापनावृत्तौ ॥आचासंगवृत्तावपि तथैव ॥ यद् उक्तम्यश्च मूलतया जीवः परिणमते स एव प्रथम पत्रतया अपिइति।एक जीव कर्तृके मूल प्रथम पत्रे इति यावत्। प्रथम पत्रकं च यासौ बीजस्य समुत्सूनावस्था भूजलकालापेक्षा सैवोच्यते। इति ॥नियम प्रदेशनमेतत् ॥शेष तु किसलयादि सकलं न मूल जीव परिणामाविर्भावितमेव इति अवगन्तव्यम् ॥
यह भावार्थ पन्नावणा सूत्र की वृत्ति में कहा है। आचारांग सूत्र की वृत्ति में भी यही भावार्थ कहा है। वह इस तरह- जो जीव मूल रूप में परिवर्तित होता है वही जीव प्रथम पत्र रूप में भी परिवर्तित होता है अर्थात् मूल और प्रथम पत्र दोनों का एक जीव कर्ता है। पृथ्वी, जल और काल की अपेक्षा वाली यह जो बीज की विकसित अवस्था है वही प्रथम पत्र कहलाता है । इस सूत्र में नियम का सूचना की है.तथा शेषं किसलंय आदि सर्वथा मूल जीव के परिणाम से प्रकट नहीं होते हैं। ऐसा समझना।
उद्गच्छन प्रथमांकुरः सर्व साधारणो भवेत् ।
वर्धमानो यथा योगं स्यात्प्रत्येकोऽथवापरः ॥७॥ ... सर्व प्रथम अंकुर फूटता है । तब वह सर्व साधारण होता है और फिर योगानुसार वृद्धि होती है तब वह प्रत्येक या साधारण होता है। (७४) __तत्र साधारण लक्षणं सामान्यतः एवम्
शरीरोच्छ्वासनिःश्वासाहाराः साधारणाः खलु । येषामनन्त जीवानां ते स्युः साधारणांगिनः ॥७॥
साधारण का सामान्यतः लक्षण इस प्रकार है- जो अनन्तकाय जीव का शरीर है, उच्छ्वास, नि:श्वास और आहार साधारण होता है वह साधारण कहलाता है। (७५)