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पुष्प में अनेक जीव हैं, पत्ते-पत्ते में एक जीव है तथा प्रत्येक बीज और फल में भी एक जीव होता है। (१०५)
'एकः पूर्णतरुस्कन्ध व्यापी भवति चेतनः ।
मूलादयो दशाप्यस्य भवन्त्यवयवा किल ॥१०६॥
सम्पूर्ण वृक्ष स्कंध में भी एक जीव व्यापी रहता है । पूर्व में जो मूल आदि दस कह गये हैं वही दस इसके अवयव हैं। (१०६)
तथोक्तं सूत्रकृतांग वृत्तौ श्रुत स्कन्ध २ अध्ययन ३-"आहावरमित्याद्यालापकस्यअर्थः-अथअपरं एतद्आख्यातंतदर्शयति-इह अस्मिन् जगति एके न तु सर्वे तथा कर्मोदय वर्तिनो वृक्ष योनिकाः सत्वा भवन्ति। तदवयवाश्रिताः च अपरे वनस्पति रूपा एव प्राणिनो भवन्ति। तथाहि। यो हि एकः वनस्पति जीवः सर्व वृक्षांवयव व्यापी भवति तस्य च अपरे तदवयवेषु मूलकन्द स्कन्धत्वक् शाखा प्रवाल पुष्प पत्र फल बीज भूतेषु दशसु स्थानेषु जीवाः समुत्पद्यन्ते। ते च तंत्रोत्पद्यमाना वृक्ष योनिका वृक्ष व्युत्क्रमाश्च उत्पद्यते ॥" ___ इस सम्बन्ध में सूत्रकृतांग सूत्र की वृत्ति में द्वितीय श्रुत स्कंध के अध्ययन दूसरे में आहावर' इत्यादि से प्रारम्भ होने वाले 'आलावा' आलापक में इस प्रकार कहा है- इस जगत् में कई अमुक कर्मों के उदय वाले वृक्ष योनि जीव हैं और कई इसके अवयवों के आश्रित रहे वनस्पति रूप ही जीव हैं। वह इस तरह- वनस्पति का जो एक जीव है वह पूरे वृक्ष के अवयवों में व्याप्त रहता है और इसके अन्य जीव इसके मूल, कंद, स्कंध, छिलका, शाखा प्रवाला, पुष्प, पत्र ,फल और बीज -इन देस स्थान रूप अवयवों में उत्पन्न होते हैं और वह वहां उत्पन्न होने से वृक्ष योनिक होता है और वृक्ष में संक्रमण होता है।
. मूलं स्यात् भूमि सम्बन्द्धं तत्र कन्दः समाश्रितः ।
तत्र स्कन्ध इति मिथो बीजान्ताः स्युर्युताः समे ॥१०७॥ . वृक्ष का मूल भूमि के साथ सम्बद्ध होता है, कंद इससे आश्रित रहता है और स्कंध उस कंद के आश्रित रहता है । इस तरह बीज पर्यन्त सर्व परस्पर जुड़े हुए हैं। (१०७)
अतः पृथ्वीगत रसमाहरन्ति समेऽप्यमी । यावत् फलानि पुष्पस्थं बीजानि फलसंगतम् ॥१०८॥