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अन्येऽपि स्नुही प्रभृतयोऽनन्तकायिका अवएपणए इत्यादि प्रज्ञापनोक्त वाक्य प्रबन्धतो ज्ञेयाः ॥ इति साधारण वनस्पति भेदाः ।
तथा पन्नवणा सूत्र में कहा है- 'अवए पणए' इत्यादि वाक्य से स्नुही आदि भी इस तरह अनन्तकाय जानना।' इस तरह से साधारण वनस्पति के भेद कहे हैं।
प्रत्येक लक्षणं चैवम् :
यत्र मूलादि दशके प्रत्यंगं जन्तवः पृथक् । प्रत्येक नाम कर्माद्यास्तत्प्रत्येकमिहोच्यते ॥ ६३ ॥
अब प्रत्येक वनस्पति का लक्षण कहते हैं: जहां मूल आदि दस के विषय में प्रत्येक नाम कर्मादि वाला अलग-अलग जन्तु होता है वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाता है। (६३)
तथा च आहुः जीव विचारे:
एग सरीरे एगो जीवों जेसिं तुते उ पत्तेया ।
फल फुल्ल छल्लिकट्ठा मूला पत्ताणि बीअणि ॥ ६४ ॥
इस सम्बन्ध में जीव विचार में कहा है कि- जिसके एक शरीर में एक जीव होता है वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाता है जैसे कि फल, फूल, त्वचा - छाल, काष्ठ, मूल, पत्ते और बीज हैं। (६४)
किंच....... मूलादेर्यस्य भग्नस्य मध्ये हीर: प्रदृश्यते । प्रत्येक जीवं तद्विन्द्याद्यदन्यदपि तादृशम् ॥६५॥
मूल आदि गिनाए गये हैं, उस विभाग से बीच में हीर जैसा वर्तन होता है । इसलिए ये सब तथा इनके समान अन्य भी सभी वनस्पतिकाय हैं। (६५)
यत्र मूलस्कन्धकन्द शाखासुदृश्यते स्फुटम् ।
त्वचा कनीयसी काष्ठात् सा त्वक् प्रत्येक जीविका ॥ ६६ ॥
जहां मूल, कंद, स्कंध और शाखाओं और काष्ट पर स्पष्ट रूप में पतली
छाल दिखती है, वह भी प्रत्येक वनस्पतिकाय है । (६६)
तस्य द्वादश भेदाः स्युः प्रत्येकस्य वनस्पतेः ।
यथा प्रसिद्धितान् कांश्चित् दर्शयामि समासतः ॥६७॥
इस तरह जो प्रत्येक वनस्पति के बारह भेद हैं, इनका समास से जैसा प्रसिद्ध है वैसा कुछ वर्णन करते हैं। (६७)