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________________ (३७३) अन्येऽपि स्नुही प्रभृतयोऽनन्तकायिका अवएपणए इत्यादि प्रज्ञापनोक्त वाक्य प्रबन्धतो ज्ञेयाः ॥ इति साधारण वनस्पति भेदाः । तथा पन्नवणा सूत्र में कहा है- 'अवए पणए' इत्यादि वाक्य से स्नुही आदि भी इस तरह अनन्तकाय जानना।' इस तरह से साधारण वनस्पति के भेद कहे हैं। प्रत्येक लक्षणं चैवम् : यत्र मूलादि दशके प्रत्यंगं जन्तवः पृथक् । प्रत्येक नाम कर्माद्यास्तत्प्रत्येकमिहोच्यते ॥ ६३ ॥ अब प्रत्येक वनस्पति का लक्षण कहते हैं: जहां मूल आदि दस के विषय में प्रत्येक नाम कर्मादि वाला अलग-अलग जन्तु होता है वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाता है। (६३) तथा च आहुः जीव विचारे: एग सरीरे एगो जीवों जेसिं तुते उ पत्तेया । फल फुल्ल छल्लिकट्ठा मूला पत्ताणि बीअणि ॥ ६४ ॥ इस सम्बन्ध में जीव विचार में कहा है कि- जिसके एक शरीर में एक जीव होता है वह प्रत्येक वनस्पतिकाय कहलाता है जैसे कि फल, फूल, त्वचा - छाल, काष्ठ, मूल, पत्ते और बीज हैं। (६४) किंच....... मूलादेर्यस्य भग्नस्य मध्ये हीर: प्रदृश्यते । प्रत्येक जीवं तद्विन्द्याद्यदन्यदपि तादृशम् ॥६५॥ मूल आदि गिनाए गये हैं, उस विभाग से बीच में हीर जैसा वर्तन होता है । इसलिए ये सब तथा इनके समान अन्य भी सभी वनस्पतिकाय हैं। (६५) यत्र मूलस्कन्धकन्द शाखासुदृश्यते स्फुटम् । त्वचा कनीयसी काष्ठात् सा त्वक् प्रत्येक जीविका ॥ ६६ ॥ जहां मूल, कंद, स्कंध और शाखाओं और काष्ट पर स्पष्ट रूप में पतली छाल दिखती है, वह भी प्रत्येक वनस्पतिकाय है । (६६) तस्य द्वादश भेदाः स्युः प्रत्येकस्य वनस्पतेः । यथा प्रसिद्धितान् कांश्चित् दर्शयामि समासतः ॥६७॥ इस तरह जो प्रत्येक वनस्पति के बारह भेद हैं, इनका समास से जैसा प्रसिद्ध है वैसा कुछ वर्णन करते हैं। (६७)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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