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________________ (३७४) . वृक्षा गुच्छा गुल्मा लताश्च वल्ल्यश्च पर्वगाश्चैव । तृणवलय हरीत कौषधिजलरूह कुहणाश्च विज्ञेयाः ॥८॥ वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्व, तण, वलय, हरीतक औषधि, जलरूह और कुहण- ये बारह प्रत्येक वनस्पति के भेद हैं। (६८) . वृक्षास्तत्र द्विभेदाः स्युः फलोद्यद्वीज भेदतः। एक बीज फलाः केचित् भूरि बीज फलाः परे ॥१६॥ इसमें पहले प्रकार का जो वृक्ष है वह इसके फल में से निकलतें एक या विशेष बीज की गिनें तो दो प्रकार का होता है; १- एक बीज युक्त फलवाला और २- अनेक बीज युक्त फल वाला । (६६) . . अंकुल्लजम्बू निम्बाम्राः प्रियालसाल पीलवः । . सल्लको शैलुब कुलभिल्लातक बिभीतकाः ॥१०॥ हरीतकी पुत्रजीवाः करंजारिष्टा किंशुकाः।। अशोक नागपुन्नाग प्रमुखा.एकं बीजकाः ॥१०१॥(युग्मं) अंकोल, जामुन, नीम, आमवृक्ष, प्रियाल, साल, पीलु, सल्लकी, शैल बकुल, भिल्लातक, विभीतिका, हरीतकी, पुत्रजीवा, करंज, अरीठा, किंशुक, अशोक, नाग, पुन्नाग इत्यादि एक बीज युक्त फल वाले होते हैं। (१००-१०१) कपित्थतिन्दुकप्लक्षध्वन्यग्रोध दाडिमाः । कदम्ब कुटजा लोधः फणसश्चन्दनार्जुनाः ॥१०२॥ काकोदुम्बरिका मातुलिंगस्तिलक संज्ञक । सपूपर्णदधिपर्ण प्रमुखा बहु बीजकाः ॥१०३।।(युग्मं।) और कपित्थ, तिंदुक, प्लक्ष, धावडी, न्यग्रोध (बड़), अनार, कदम्ब, कुटज, लोध, फणस-कटहल (पनस), चंदन, अर्जुन, काकोदुम्बरी, मातुलिंग, तिलक, सपूपर्ण, दीर्घपर्ण इत्यादि बहुबीजयुक्त फल होते हैं। (१०२-१०३) प्रत्येकमेषां वृक्षाणां प्रत्येकासंख्य जीवकाः ।..... मूलकन्द स्कन्ध शाखा त्वक् प्रवाला उदीरिताः ॥१०४॥ इन वृक्षों में प्रत्येक के मूल, स्कंध, शाखा, छाल तथा प्रवाल में प्रत्येक में असंख्य जीव रहते हैं। (१०४) पुष्पाण्यनेक जीवानि एकैकोऽङ्गी दले दले । प्रत्येकमेक जीवानि बीजानि च फलानि च ॥१०॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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