SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 409
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३७२) और भी लक्षण कहे हैं । वह बहुत श्रुत-विद्वानों के पास से जान लेना चाहिए। (८४-८५) अयोगोलो यथाध्मातो जातस्तप्त सुवर्णरुक् । सर्वोऽप्यग्नि परिणतो निगोदोऽपि तथाङ्गिभिः ॥६॥ एक लोहे का गोला हो और उसे तपाकर सुवर्ण समान पूरा गरम कर दे, तब वह जैसे सर्वत्र अग्नि से व्याप्त होता है वैसे सर्व निगोद भी जीव से व्याप्त होता है। (८६) तत्रापि बादरानन्तकायिकाः स्युरनेकधा । । मूलक शृंगबेराद्या प्रत्यक्षा जन चक्षुणाम् ॥८७॥ .. तथा ऐसे कई बादर अनन्तकाय भी होते हैं । मूली, प्याज या अदरक आदि हैं जो कि हम लोग प्रत्येक जानते हैं। (८७) तथाहि....सव्वाउ कंद जाई सूरण कंदो य वजकंदो य। .. ___ अल्लहलिहा य तहा अई तह अल्लकच्चूरो ।।८८॥ सत्तावरी विराली कुंआरि तह थोहरी गलो इअ । लसणं वंस करिल्ला गज्जर लूणओ लोढो ८६॥ गिरिकन्नि किसलपत्ता पिरि सुआ थेग अल्लमुत्था य। तह लूण रूखखछल्ली खिल्लहडो अमयवल्ली य॥०॥ मूला तह भूमि रूहा विरूहा तह टक्कवत्थुलोपढमो। सूअर वल्लो अ तहा पल्लंको कोमलंबिलिया ॥१॥ आलू तह पिंडालू हरवं ति एए अणंतनामे हिं। . अनमणंतं नेयं लख्खण जुत्तीइ समयाओ ॥६२॥ वह बादर अनन्तकाय शास्त्र में इस तरह कहा है- सर्व जाति के कंद, सूरणकंद, वज्रकंद, हरी हलदी, हरी अदरक, हरा कचुरा, सतावरी, विरली कुआर, थोर, गलो, लहसुन, बांस, करेला, गाजर, लुणी, लोदर, गिरिकर्णी, किसलय पत्र, खीर सुआ, थेग, हरा मोथ, लूणी वृक्ष की छाल, खीलोडा, अमर बेल, मूली, भूमि फोड़ा, विरुआ, टांका का प्रथम पत्र, सूकरवेल-लता, पलाक की भाजी, कोमल इमली, आलू, पिंडालू तथा हरवंती- ये और ऐसे लक्षण वाले अन्य भी जो शास्त्र में कहे हैं इत्यादि । (८८ से ६२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy