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प्रज्ञापना सूत्र की वृत्ति में कहा है कि- व्यवहार राशि में से निकलकर जितने जीवों का निर्वाण होता है उतने अनादि वनस्पति में से उसमें आते हैं। (५८)
__ अनन्तेनापि कालेन यावन्तः स्युः शिवं गताः ।
. सर्वेऽप्येक निगोदैकानन्त भागमिता हि ते ॥५६॥ - अनन्तकाल तक जितने प्राणी मोक्ष गये हैं, वे सब मिलाकर एक निगोद के केवल अनन्तवें भाग जितने ही गये हैं, ऐसा समझना (५६) . कालेन भाविनाप्येवमनन्ता मुक्तिगामिनः ।
चिन्त्यन्ते तैः समुदितास्तथापि नाधिकास्ततः ॥६०॥
इसी तरह ही भविष्यकाल में भी अनन्त जीव मोक्ष जायेंगे । इन सबको एकत्रित करने पर भी एक निगोद के अनन्तवें भाग से अधिक नहीं होने वाले हैं। (६०) एवं च- न तादृक् भविता कालः सिद्धा सोपचया अपि ।
यत्राधिका भवन्त्येक निगोदानन्तभागतः ॥११॥ इसी तरह और ऐसा कोई समय नहीं आयेगा कि जिसमें कुल मिलाकर : सिद्ध हुए भी निगोद के अनन्तवें भाग से अधिक हों। (६१)
तथाः.: जइया होइ पुच्छा जिणाणं मग्गंमि उत्तरं तइया । .. .. इक्कस्स निगोअस्स य अणंतभागो उ सिद्धि गओ ॥६२॥
अन्य स्थान में कहा है कि- जब- जब भी जिनेश्वर भगवन्त से प्रश्न क्रिया जाता है तब यही उत्तर मिलता है कि एक निगोद का अनन्तवां भाग ही अब तक मोक्ष गये हैं। (६२) . . ... निगोदेऽपि द्विधा जीवास्तत्रैके व्यावहारिकाः ।
व्यवहारादतीतत्वात् परे चाव्यावहारिकाः ॥६३॥ निगोद के जीव दो प्रकार के होते हैं । उनमें कई तो व्यवहारी और दूसरे अव्यवहारी अर्थात् व्यवहार रहित होते हैं। (६३)
सूक्ष्मान्निगोदतोऽनादे निर्गता एकशोऽपि ये । पृथ्व्यादि व्यवहारं च प्राप्तास्ते व्यावहारिकाः ॥१४॥ सूक्ष्मानादि निगोदेषु यान्ति यद्यपि ते पुनः । ते प्राप्तव्यवहारत्वात्तथापि व्यवहारिणः ॥६५॥