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(३४३) अतः नौवां द्वार शरीर के विषय में कहा है। एकेन्द्रियाणां संस्थानं सर्वेषां हुंडमीरितम् । तत्राप्येष विशेषस्तु दृष्टो दष्ट जगन्त्रयैः ॥६६॥
सर्व एकेन्द्रिय जीवों का हुंडक संस्थान कहा है परन्तु उसमें श्री जिनेश्वर भगवान् ने कुछ विशेषता कही है। वह आगे कहते हैं। (६६)
मसूर चन्द्र संस्थाना सूक्ष्मा क्षोणी द्विधापि हि । सूक्ष्माः स्तिबुक संस्थाना आप: पाप हरैः स्मृताः ॥१७॥ सूची कलाप संस्थानं तेजो वायुर्वजाकृतिः । सूक्ष्मो निगोदोऽनियत संस्थानः परिकीर्तितः ॥१८॥ दोनों प्रकार के सूक्ष्म पृथ्वीकाय जीव मसूर और चन्द्रमा के आकार के हैं और सूक्ष्म अपकाय स्तिक बुक आकार के होते हैं। तेउकाय सुई के समूह. के आकार के और वायुकाय ध्वज के आकार वाले होते हैं। सूक्ष्म निगोद का आकार अनिश्चित है। (६७-६८)
इति जीवाभिगमाभिप्रायः॥ इस तरह जीवाभिगम में कहा है। संग्रहणी वृत्तौ च - 'भिगोदौ दारिकदेहं स्तिबुकाकारमुक्तम् ।'
· इति संस्थानम् ॥१०॥ 'संग्रहणी' की वृत्ति में तो निगोद का औदारिक देह स्तिबुक की आकृति का होना बताया है।' यह दसवां द्वार संस्थान' विषयं कहा है।
अंगुलासंख्यांशमानं सूक्ष्ममैकन्द्रिय देहिनाम् । सामान्यतः शरीरं स्याद्विशेषतस्तु वक्ष्यते ॥६६॥
___इति देहमानम् ॥११॥ सूक्ष्म एकेन्द्रियों का साधारणतः देहमान अंगुल के असंख्यवें भाग जितना " होता है। विशेषतः आगे कहा जायेगा। (६६)
यह ग्यारहवां द्वार 'देहमान' विषय कहा हैं।
कषायानां वेदनाया मृत्योश्चेति जिनैस्त्रयः । निरूपिताः समुद्घाताः सूक्ष्मैकाक्षशरीरिणाम् ॥१००॥