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अथ पंचम सर्गः वर्ण्यन्तेऽथ क्रमप्राप्ता बादरैकेन्द्रियांगिनः । ते च षोढा पृथिव्यम्बुतेजोऽनिलास्तथा द्रुमाः ॥१॥
अब पांचवां सर्ग प्रारंभ होता है। इसके पहले चौथे सर्ग में सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों का वर्णन किया है। इसके बाद क्रमानुसार आते बादर एकेन्द्रिय जीवों का वर्णन किया जाता है। वह छः प्रकार के हैं। १- पृथ्वी, २- अल्प (जल); ३- तेउ (अग्नि), ४- वाउ (वायु)। (१)
प्रत्येकाः साधारणाश्च षडप्येते द्विधा मताः । पर्याप्तापर्याप्त भेदादेवं द्वादश बादराः ॥२॥
तथा ६- प्रत्येक वनस्पति और ६- साधारण वनस्पति हैं । इन छहों के पुनः पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो भेद होते है । इस प्रकार से बारह तरह के बादर एकेन्द्रिय होते हैं। (२)
बादराख्यनाम कर्मोदयाघे स्थूलतां गताः,।
चर्म चक्षुर्दश्यमाना बादरास्ते प्रकीर्तिताः ॥३॥ __ बादर नाम कर्म के उदय से स्थूल रूप मोटापन प्राप्त किया हो व चर्म चक्षु से दिखता हो, उसका नाम बादर कहलाता है। (३) । तत्र च ..... अपर्याप्तास्त्वविस्पष्ट वर्णाद्या अल्प जीवनात्।
पर्याप्तानां च वर्णादिभेदैर्भेदाः सहस्रशः ॥४॥ और अल्प जीवी होने से जिसका वर्ण रूप आदि स्पष्ट रूप में नहीं दिखता वह अपर्याप्त बादर कहलाता है, और पर्याप्त बादर के तो वर्ण आदि में भिन्नता होने से हजारों भेद होते हैं। (४)
बादरा पृथिवी द्वेधा मरेका खरापरा । भेदाः सप्त मृदोस्तत्र वर्णभेद विशेषजाः ॥५॥ ..
बादर पृथ्वी भी दो प्रकार की होती है, १- कोमल, २- कठोर (कर्कश) -कोमल पृथ्वी के भी अलग-अलग रंग होते हैं उसके जितने रंग होते हैं उतने भेद होते हैं अर्थात् उसके सात भेद हैं। (५)
कृष्णा नील रूणा पीता शक्लेति पंच मुद्भिदः ।। षष्ठी देश विशेषोत्था मृत्स्ना पांडुरिति श्रुता ॥६॥