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(३३३) . ते सहोच्छ्वास निःश्वासाः समं चाहार कारिणः ।
अनन्ता अति सूक्ष्मेङ्गे सहन्ते हन्त घातनाम् ॥३४॥
यह अनन्त-निगोद जीव साथ में ही श्वासोच्छ्वास लेते हैं, आहार भी साथ में ही करते हैं, और अपने अत्यन्त सूक्ष्म शरीर पर घात को भी साथ में सहन करते हैं। (३४) - तथोक्तम्
जं नरए नेरइया दुख्खं पावंति गोअमा तिख्खम् । .. तं पुण निगोअजीवा अणंत गुणियं वियाणाहि ॥३५॥
श्री भगवती सूत्र में गौतम गणधर के प्रश्न का श्री वीर परमात्मा ने उत्तर देते हुए कहा है कि- हे गौतम! नरक में रहे नारकी जीवों को जो तीक्ष्ण दुःख प्राप्त होता है, इससे भी अनन्त गुणा दुःख निगोद के जीवों को होता है। ऐसा समझना। (३५)
सूक्ष्मा अनन्त जीवात्मका निगोदा भवन्ति भुवनेऽस्मिन् । पृथ्व्यादि सर्व जीवाः संख्येयकसंमिता असंख्येया ॥३६॥
- इति भगवती वृत्तौ ॥ इस जगत में सर्व सूक्ष्म निगोद अनन्त जीवात्मक है और पृथ्वीकाय आदि सर्व:जीवों की जो संख्या हो सकती है वही असंख्य है। इस तरह भगवती की वृत्ति में कहा है। (३६)
एभिः सूक्ष्मनिगोदैश्च निचितोऽस्त्यखिलोऽपि हि । लोकोऽञ्जन चूर्णपूर्ण समुद्गवत्समन्ततः ॥३७॥
जीवाभिगम वृत्तौ। .... सम्पूर्ण जगत् इस सूक्ष्म निगोद से चारों तरफ से भरा हुआ जैसे अंजन से - भरी डब्बी के समान है। (३७)
जीवाभिगम सूत्र की वृत्ति में कहा है कि - असंख्येयैर्निगोदैव स्यादेकः किल गोलकः । गोलकास्तेऽप्यसंख्येया भवन्ति भुवनत्रये ॥३८॥
असंख्य निगोदो का एक गोला होता है और फिर ऐसे असंख्य गोले तीन जगत् में होते हैं। (३८)